अनकहे अल्फ़ाज़
अधूरे ख़्वाब-
तारो को टूटते देखा है, सूरज को ढलते देखा है,
आसमां को रोते देखा है, हा, मै भी एक इंसान हूं,
दिल से दिल को अलग होते देखा है, रूह से रूह को बिछड़ते देखा है, हा मै भी इंसान हूं,
दोस्ती में खुद को तड़पते देखा है।।।-
अपनों के कुछ अल्फ़ाज़ ही काफ़ी है,
चंद पलों में मोहब्बत ख़तम करने को।
दर्द उनकी बेरूखी नहीं देती
देती है तो उनकी समझ,
जो कभी समझी नहीं आपको।
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कसूर उनका नहीं,
कसूर तो हमारा जो हद से ज्यादा उनमें खो गए।
इश्क़ किया है तो निभाएंगे ज़रूर,
जब तक अपनी आंखो से आंख मिला पाए तब तक।
वक़्त तुझपे नहीं तो हम भी अपनी याद नहीं दिलाएंगे,
देखें तो सही ये इश्क़ का रंग कितना गहरा है तेरे ओर।
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अगर एहमियत रखता हु तो इसी ज़िंदगी मे एहसास करा दे।
तेरे भीगे नैनों के अक्श ना रोक पाऊ...
तो कैसी मोहब्बत ।
अगर है मोहबत तो अभी रोक ले,
ये बंदा कल ना रहे तो क्या करोगे।
याद करोगे साथ बिताए लम्हों को,
जब हम ही ना रहेंगे तो क्या करोगे ।-
यादें हमारे फ़ीके होने लगे,
साथ बिताए लम्हें दुंधले होने लगे...
कसुर ना उनका ना हमारा
कसुर तो उनकी चाहत की जो किसी और के होने लगें...-