Sumit Rajendra Dubey   (SUMIT DUBEY)
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"सम्पूर्ण जीवन का सार तत्व हरे कृष्ण"
Joined 9 February 2017


"सम्पूर्ण जीवन का सार तत्व हरे कृष्ण"
Joined 9 February 2017
22 APR AT 8:47

श्रृंगार इस धरा का वन पवन है पावन।
जब पेड़ काटते हम रोता है आज सावन।।

पेड़ एक लगा कर भूमि को हम सजा ले।
स्वर्ग से भी सुन्दर पृथ्वी को हम बना ले।।
भूमि को हम सजा ले गर पेड़ हम बचा ले।
कुछ इस तरह से हम #पृथ्वी_दिवस मना ले।।

पेड़ पौधों से भर लहरे धरा का आँचल।
बन 'अमृता' सी बाहें दायित्व हम निभा लें।।

जननी जगत की यह मातृभूमि पृथ्वी।
पालती समष्टि कर नूतन नवीन सृष्टि ।।

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22 APR 2021 AT 7:30

श्रृंगार इस धरा का वन पवन है पावन।
जब पेड़ काटते हम रोता है आज सावन।।

पेड़ एक लगा कर भूमि को हम सजा ले।
स्वर्ग से भी सुन्दर पृथ्वी को हम बना ले।।
भूमि को हम सजा ले गर पेड़ हम बचा ले।
कुछ इस तरह से हम #पृथ्वी_दिवस मना ले।।

पेड़ पौधों से भर लहरे धरा का आँचल।
बन 'अमृता' सी बाहें दायित्व हम निभा लें।।

जननी जगत की यह मातृभूमि पृथ्वी।
पालती समष्टि कर नूतन नवीन सृष्टि ।।

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10 APR 2021 AT 23:46

आज के धनानंद सत्ता भोग के मद में चूर होकर चाणक्य को धिक्कार रहे है
भूल गए है शिक्षक के सामर्थ्य को
चाणक्य ने किसी चंद्रगुप्त को तैयार किया तो
इनका ये कोरा साम्राज्य क्षण भर में पत्तो की भांति बिखर जायेगा।

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10 MAY 2020 AT 21:24

बड़े शहर विकसित शहर
बड़े भवन ऊँचे बहुत ऊँचे भवन
इनमें रहने वाले बड़े बहुत बड़े लोग

मजदूर बहुत मेहनती बहुत मजबूत
ऊँचे बहुत ऊँचे भवन निर्माता मजदूर
बड़े लोगो के दिल में न समाता मजदूर
धोखा बहुत बड़ा धोखा खाता मजदूर

बड़े होटलों में खाना बनाता मजदूर
बना खाना ऑफिस पहुँचाता मजदूर
बड़े लोगों के कपड़े धोता मजदूर

दिन हो या रात कब सोता मजदूर
शहर की सफाई करता मजदूर
शहर में ही दवाई को होता मजबूर
बड़े लोगो के दिल मे न समाता मजदूर
धोखा बहुत बड़ा धोखा खाता मजदूर

खुद डरता मजदूर को डराता शहर
मजबूर पर ये कैसा कहर ढाता कहर
मजदूर को शहर से भगाता शहर

कोरे मकान निहायती खोखले मकान
ओछे लोग बहुत ही ओछे लोग
कोरा रे कोरा बहुत कोरा शहर
बौना रे बौना बहुत बौना शहर

- सुमित कुमार दुबे

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22 APR 2020 AT 8:01

श्रृंगार इस धरा का वन पवन है पावन।
जब पेड़ काटते हम रोता है आज सावन।।

पेड़ एक लगा कर भूमि को हम सजा ले।
स्वर्ग से भी सुन्दर पृथ्वी को हम बना ले।।
भूमि को हम सजा ले गर पेड़ हम बचा ले।
कुछ इस तरह से हम #पृथ्वी_दिवस मना ले।।

पेड़ पौधों से भर लहरे धरा का आँचल।
बन 'अमृता' सी बाहें दायित्व हम निभा लें।।

जननी जगत की यह मातृभूमि पृथ्वी।
पालती समष्टि कर नूतन नवीन सृष्टि ।।

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15 APR 2020 AT 14:26

समाज श्रेष्ठ लोगों से घबराता है
यही कारण है कि उसमें स्त्रियों को समकक्ष मानने का साहस नहीं है।

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6 APR 2020 AT 12:29

तू अनन्त आकाश है।

Purest Soul that God Has Sent to ❤️

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18 NOV 2019 AT 15:42

पथरीली हैं राह विकट
किन्तु मंजिल भी निकट
चल पड़ तू त्याग कर
नींद चैन और सुकूँ
देख तेरा यह जुनूँ
विजय 'श्री' चरणों में है

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18 NOV 2019 AT 14:09

हाथ, जिन में हो जुनूँ, कटते नहीं तलवार से;
सर जो उठ जाते हैं वो, झुकते नहीं ललकार से।

हम तो निकले ही थे घर से, बाँधकर सर पे कफ़न
जाँ हथेली पर लिये लो, बढ चले हैं ये कदम।

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29 AUG 2019 AT 21:56


बटोर कर कागज़ी खैरात को
बन बैठे है शिक्षा के ठेकेदार जो,
बोलने तक का इल्म नहीं है
ऐसे चाटुकारो के प्रधान को ।।


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