Sumit Rai   (सुमित राय)
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Joined 20 July 2020


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Joined 20 July 2020
24 MAR 2023 AT 12:32

आंखे मूंद लेने पर हमे वो दिखता है
जिसे हमने दुनिया से छिपा रखा है
हमारे अंदर का वो विचलित इंसान
जिसे मौन होना पड़ा अंदर के कोलाहल से
मुस्कुरा के छिपा लिए चहरे के सभी भाव
ये तरीका अपना लिया उसने जीने का ।।

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15 MAR 2023 AT 14:49

मैंने आईने मे तुम को देखा है
मेरे साए में भी आहट है तुम्हारी
कुछ भाव दिल में छुपे बैठे हैं
तो कुछ जुबां से बयां है हमारी

मुझे शोर भी अब सन्नाटे लगते है
मुझे याद है मृदुल आवाज़ तुम्हारी
वक्त के कांटे क्यू और ठहरते नही
आखिर जब भी होती है बात हमारी

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10 FEB 2023 AT 17:07

मेरी चाहते तेरी दूरियां और हमारे बीच ये मजबूरियां शायद इस अमिट कहानी के अंत का पर्याप्त सार है ।

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24 JAN 2023 AT 10:45

हर बार जरूरी नही की जताया जाए
आंखो से अब क्या क्या छुपाया जाए
कुछ ख्वाब तो अब धुंधले से हो गए हैं
लेकिन उन्हें जहन से कैसे मिटाया जाए
शहरों की दुनियां तो अब उजड़ चुकी है
सुकुन की बस्ती को कैसे बसाया जाए
कभी ना कभी तो खत्म होंगी आंधियाँ
सब्र के दीयो को बुझने से बचाया जाए
हर सुबह उम्मीदों का गीत गुनगुनाया जाए
हालात कैसे भी हों दिल से मुस्कुराया जाए

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20 DEC 2022 AT 8:51

आओ चलो अब हम ख्वाबों का कारोबार करें
दूरियां सारी मिट जाएं कुछ ऐसे हम प्यार करें

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30 NOV 2022 AT 0:10

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mere_alfaaz_sr

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31 OCT 2022 AT 23:03

हर मुश्किल का सीधा उपाय हो तुम
सुबह ए बनारस की चाय हो तुम

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8 OCT 2022 AT 13:28

मौसम की अंगड़ाईयों से बागी हुई हवाएं
रूह छु के आज इन को गुजर जाने दे
दूरियों की ताबिश से सुर्ख हुई है मोहब्बत
मोम की तरह इस को पिघल जाने दे
बारिश बन दी है चाहतो ने दस्तक दिल पे
इन बेसब्र बूंदों को खुद पे बरस जाने दे

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10 SEP 2022 AT 11:44

समझने को तो सब है पर कहने को कुछ नही
यूँ तो मुकम्मल सा हूँ खुद मे पर हूँ मै कुछ नही
टूटे हुए तो नही हैं धागे पर जुड़े जैसे कुछ नही
मिला तो लगा सब है पर बिछड़ा जैसे कुछ नही

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9 AUG 2022 AT 23:39

रोज़गार शिक्षा स्वास्थ का अब तक ना बदला हाल
खैर खुशियाँ मनाइये देश मे चल रहा है अमृतकाल
बेरोजगारी है बुलंदियों पे महंगाई ने आसमां छुआ है
LPG, petrol तो छोड़िये CNG का विकास हुआ है
साँस लेना छोड़ बाकी सब पर GST का मोह हुआ है
DP पे तिरंगा ही देशप्रेम, सवाल पूछना विद्रोह हुआ है
भगवा, हरे के बीच सफेद रंग ये समझना अनमोल है
जो इनमें हैं भेद करते उनकी मानसिकता मे झोल है
वादे क्या और जुमले क्या ये सब तो बस मन की बात है
गिरती आत्मीयता बढ़ते धार्मिक भेदवाव देश पे आघात है
मीडिया करती चाटुकारिता, सच झुठ अब दिखलाये कौन
सिर्फ वोट देना ही काम नही ये जनता को बतलाए कौन

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