Sumit Dubey   (Sumit Dubey)
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यहां सिर्फ मोटी किताबें और छोटा जौन है
Insta I'd _antitoxic_
Joined 12 November 2019


यहां सिर्फ मोटी किताबें और छोटा जौन है
Insta I'd _antitoxic_
Joined 12 November 2019
22 MAY 2022 AT 12:14

यहां इश्क तो दस्तूर है जमाने के लिए ,
छोटी है जिंदगी इसमें समाने के लिए,

एक खूबसूरत ख्वाब है ये आशिकी भी ,
कोई आ ना जाए मुझको जगाने के लिए ,

मिला तो लेंगे गर्मजोशी से वो हाथ मुझसे,
जरा वक्त लगेगा मुझे हाथ दबाने के लिए ,

सिलसिलों का क्या है वो चलते रहेंगे ,
कुछ नुस्खे चाहिए हैं उसे मनाने के लिए,

एक नौकरी है और थोड़ा काम भी है ,
देर से आऊंगा ये भी है बताने के लिए,

वो अगर आए तो क्या रोशन करूंगा मैं
गजलों की झालर है शाम सजाने के लिए,

सोच लो अब कर ही लो ये इश्क भी जानी,
उम्र तो सारी पड़ी है पैसे कमाने के लिए ।


✍️Sumit


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3 APR 2022 AT 13:33

इश्क पहले आसान बनाना पड़ता है ,
ऐसे ही किसी को जान बनाना पड़ता है,

वो जान बन जाए जो जानलेवा हाए,
फिर उसे अनजान बनाना पड़ता है,

वो खुशकिस्मत जिनके हिस्से इश्क,
नहीं तो कलाई पे निशान बनाना पड़ता है,

वैसे तो मुझसे आंख न मिला पाए ,
गर इश्क हो तो गिरेवान बनाना पड़ता है ,

मैं आज तक किसी को न नवाजा ,
फिर मोहब्बत हो तो मेहमान बनाना पड़ता है,,

मैं खाली तरकश हूं मुकम्मल इस तरह ,
कुछ आ भी गया तो कमान बनाना पड़ता है,


अब उम्र ढल गई और मैं बूढ़ा हो चला,
उसे याद करूं तो खुद को जवान बनाना पड़ता है
✍️सुमित कुमार

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17 OCT 2021 AT 22:52

बदले है थोड़े ढंग बदला है ठिकाना ,
मय से बस लिपटा रहा खाया नहीं खाना,

खूब मैने रो लिया रोया नहीं जाता,
चीखना है आज मुझको भर दे पैमाना,


बदनसीबी का सितम छाया है कुछ ऐसे
जानते हैं लोग बस उसने नहीं जाना ,


चाहता जो मैं कभी तो जीत ही लेता
जान कर भी यार मैंने तीर ना ताना ,


काटकर वो लफ्ज़-ए-गुल तुम सफीने से
भूल जाना तुम मुझे अब ,लौट ना आना ,


यार अब मैं इश्क को बदनाम कर दूंगा,
नाम पे बस इश्क के लगता है जुर्माना,

गौर मैने ना किया की फरेब होता है ,
ठीक से देखा है अब अच्छे से पहचाना ,

आज मुझको चढ़ गई है इश्क के जैसे,
तुम मुझे कल मयकदे से खींचकर लाना ।

✍️सुमित कुमार

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6 OCT 2021 AT 23:30

वो देता है गलत शिफाएं धोखे से ,
फिक्र करके और बीमार करता है।

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6 OCT 2021 AT 20:48

ख्यालों से दूर सही ख्वावों में तो है
कुछ नहीं है तो क्या बातों में तो है,

अब वो नथ नहीं पहनती तोहफे बाली,
खैर कंगन जो दिया था हाथों में तो है ।

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2 OCT 2021 AT 8:53

हंसी को कहीं और गम को कहीं, बांटते हैं लोग,
गैरों से मोहब्बत अपनों को बस डांटते हैं लोग,

बैसे तो हुनरमंदी ही काम आती है सब जगह
फिर डिग्रियों से क्यों हमें ये छांटते है लोग ,

बातें तो होती हैं बहुत अच्छी सी बस यहां,
ऐसे ही बैठकर कहीं बस हांकते हैं लोग

अपने घरौंदे को संवारने की फिकर नहीं,
आंगन में दूसरे के बस कुछ झांकते हैं लोग,


मुंह पे मिठास हैं लिए और घूमते हैं लोग
पिटारे में बंद हैं मेरे कुछ सांप से हैं लोग l

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29 SEP 2021 AT 10:08

इश्तिहार लगे हैं हर मर्ज के दीवारों पर
कोई दर्द ए इश्क का प्रचार क्यों नहीं करता ?

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25 SEP 2021 AT 23:29

खैर पसंद नहीं तुझे मेरे कसीदे ,
चल एक बार मेरी बुनाई देख तो ले !

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25 SEP 2021 AT 23:23

वो बात तुम कहो तो फिर से
इन बाजुओं में रहो तो फिर से,

सुन्न है खूं की रफ्तारें जाने कबसे
रगों में इश्क बन बहो तो फिर से,

अच्छा ,अब इसे जावेदानी कह दो
थोड़ी नोक झोंक हो तो फिर से,

वो लिबास में थोड़ी सादगी रखना
मुझे फिर वैसे ही लगो तो फिर से,


अच्छा मेरा सर सीने पे रख के
बालों को सीधा करो तो फिर से,

मैं छुप के परदे में चीख दूं तो ,
लिपट के थोड़ा डरो तो फिर से ।

✍️सुमित कुमार

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25 JUL 2021 AT 12:26

इस जहां में लोग कुछ ऐसे भी होते हैं,
खूबसूरत के अलावा ये कैसे भी होते हैं ,

कुछ बांटने आ जाते है मेरा ही गम मुझसे
कुछ दोस्त मेरी मां के जैसे भी होते हैं l

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