उसे मैंने अपने प्यार से परेशान कर रखा है
उसका मुझे छोड़ जाना कितना आसान कर रखा है।
वो है हर महफ़िल की जान अब
जिसके लिए मैंने अपना घर वीरान कर रखा है।
होगी महबूबा सबके लिए चांद अपनी
उसे तो हमने अपना पूरा आसमान कर रखा है।
मिन्नतें वो मेरी कुबूल करता ही नही
जिसे मैंने खुदा और खुदको इंसान कर रखा है।
इश्क में मेरी हिस्सेदारी थोड़ी ज्यादा हो
इसलिए मैंने खुदको बेइमान कर रखा है।
रिश्ते और भी होंगे उसके, उसे क्या मालूम
उस एक शख्स ने, उस एक शख्स के लिए
हर शख्स कुर्बान कर रखा है।
उससे बिछड़े तो फिर निवाला हलक से गया ही नही
मैंने बरसों से उसके हिज़्र को रमज़ान कर रखा है।
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