खुश रहना उस "रात" वाले की बाहों में,
जिस "रात" तुम मेरे बिना रह नहीं पाई।-
वो थी, तो हर रोज सिर्फ़ जुलूस था,
अब सिर्फ मैं हूँ, तो हर रोज सुकून है।-
तड़प है, प्यास है, पर ना अब कोई आस है,
क्यूँ जी रहा हूँ मैं, क्या यकीन कोई खास है,
जिस कैद से रिहा हुआ, आज फिर मैं वहीं कैद हूं,
वही चार दीवार, वही कश्मकश सवार है,
दिमाग जैसे सुन सा है, एहसास जैसे गुम सा हैं,
आँखों से नीर बह रहा, बिन बात के क्यूँ बह रहा,
मुझे है अब जो चाहिए, पर अब नहीं वो चाहिए,
मिट्टी में मिला हूँ मैं, मिट्टी से फिर जगूँगा मैं,
तड़प है, प्यास है, पर ना अब कोई आस है।-
इक काबिल महबूब हो मेरा भी,
जैसे कृष्ण मिला है राधा को,
जब दोनों यूँ ही बैठे बात करें,
ये जीवन ही सत्संग हो जाए,
शिव शंभू के नाम की चर्चा हो,
यमुना मय करुणा बेह जाए,
राम जन्म की वो बात कहे,
मैं पार्वती बन बस खो जाऊँ,
कभी दर्शन हो जाए कान्हा का,
कभी अखियां मूँद वो छुप जाए,
वो गोवर्धन जैसी छाया हो,
मैं त्रिशूल जैसा ताप बनूँ,
मैं इक वृंदावन का बांका हूं,
वो किशोरी जैसी इठलाए ,
महबूब मिले मुझे सीता सा,
मैं राम बन लंका चड़ जाऊँ,
वो पार्वती बन पूछे सीता राम,
मैं शिव बन रामायण कह जाऊँ,
इक काबिल महबूब हो मेरा भी,
जैसे कृष्ण मिला है राधा को,-
खुद करते हैं अपराध हर रात खुले आम,
और निर्दोष के लिए मांगते फांसी है,
जिंदा रहे तुम जैसे लोग तो अफसोस होगा मुझे,
तुम्हारी ज़िंदगी और कुछ नहीं,
सिर्फ एक अश्लील झांकी है।-
दिल दुखाने का शौक है ना तुम्हें, दुखा लो,
बस इतना याद रखना, मेरी आह दूर तलक जाती है।-
तुझ प़र, ग़ुस्सा भी तो नहीं आता मुझे,
वो तेरा, मासूम बच्चे सा चेहरा याद आजाता है।-
सिर्फ ढेर राख का, और कफ़न में हैं सभी,
पुतले बस द्वेष के, रगों में बहता छल है,
अघोर की सच्चाई में, माया बस ढूँढते सभी,
इरादों में तंग हैं, वादों से अपंग हैं,
औऱ बोलते हैं सभी यहाँ, हम तो बस मलंग हैं।-
मेला लगा है ख्वाहिशों का,
'दाव' पर लगा है वक्त,
लूट ले जो भी लूट सके तू,
ना ये साँसें हो जाएँ जप्त।-
सब रिश्ते खो कर, सीखा है मैंने रिश्ते निभाना,
अब हर कोई मेरा रिश्तेदार है यहाँ ।-