इक काबिल महबूब हो मेरा भी,
जैसे कृष्ण मिला है राधा को,
जब दोनों यूँ ही बैठे बात करें,
ये जीवन ही सत्संग हो जाए,
शिव शंभू के नाम की चर्चा हो,
यमुना मय करुणा बेह जाए,
राम जन्म की वो बात कहे,
मैं पार्वती बन बस खो जाऊँ,
कभी दर्शन हो जाए कान्हा का,
कभी अखियां मूँद वो छुप जाए,
वो गोवर्धन जैसी छाया हो,
मैं त्रिशूल जैसा ताप बनूँ,
मैं इक वृंदावन का बांका हूं,
वो किशोरी जैसी इठलाए ,
महबूब मिले मुझे सीता सा,
मैं राम बन लंका चड़ जाऊँ,
वो पार्वती बन पूछे सीता राम,
मैं शिव बन रामायण कह जाऊँ,
इक काबिल महबूब हो मेरा भी,
जैसे कृष्ण मिला है राधा को,
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