सुनो बाज़ार जा रहे हो.....
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(दुनिया में सभी एक ही ... read more
हाथों में हाथ हो...
और वो मेरे साथ हो....
फिर तो मानों ....
पूरी काएनात मेरे पास हो ...
आए हाए फिर.....
क्या ही बात हो...-
ऐसे रुठों,
दुनिया से,
कि खुद से ,
मुलाकात,
हो जाए.... !
लड़खड़ाते,
गिरते,
संभलते,
ही सही,
मंजिल तेरे ,
पास हो जाए.... !!
खामोश रहे ,
बेशक ,
जुबान तेरी,
पर हैसियत,
से हर बात हो जाए...!!!
सुमन वर्मा... ✍
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उम्मीद की धुंध.....
बादलों में छुपा...
हल्का सा निकला...
उम्मीद की धुंध में लिपटा...
वो चांद....!!!
खुबसूरती बेसुमार ...
लिए बैठा है....
शायदृ... !!!
उसे भी मालूम है...
रोशनी हल्की सी ही सही....
आशाओं की है....
कम से कम...
किसी भटके मुसाफिर को...
मंजिल तक तो ले जाएगी...
मतलब के अंधकार...
से भरी दुनिया में...
कुछ किरणें अपनेपन की...
तो नजर आएंगी....
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ना कहीं .....
जाती है....
ना सहीं ....
जाती है...
कुछ बातें.....
अंदरूनी जख्म दे...
जाती है......-
नासमझ....
ओर नादान सा.....
एक शख्स...
मुझसे अपनेपन का...
रिश्ता रखता है....
दूर हो कर भी...
वो मुझमें अपना...
एक अनमोल....
हिस्सा रखता है....
समझदारी की....
लकीरों से...
बहुत परे है...
ये अहसास....
दिल से रूह का....
सुकून रखता है....-
""क्या महोब्बत को....
ठुकरा कर महोब्बत पाई जाती है """
(See the caption )-
वक्त बे- वक्त उठाई कलम...
स्याही से ज्यादा ...
वो तड़प से भरी थी....
जज्बातों के अलफ़ाज़ बन...
बिखर गई ,पंन्नो पर....
मानों किसी अपने से...
मिलने की बैचेनी ....
उसमें भी भरी थी.....
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खरीद नहीं ....
पाओगे....
कोहीनूर...
देकर भी....
चाहतों की ....
दुनिया में...
मुस्कुराहटें ...
अनमोल होतीं हैं-
जिंदगी की....
किताब पर...
दिखावे का कवर...
कितना भी मंहगा ...
चढ़ा लो.....
अगर अंदर ...
इंसानियत के...
पंन्नें फटे है...
तो वो किताब ....
रद्दी में ही जाएगी....
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