नासमझ.... ओर नादान सा..... एक शख्स... मुझसे अपनेपन का... रिश्ता रखता है.... दूर हो कर भी... वो मुझमें अपना... एक अनमोल.... हिस्सा रखता है.... समझदारी की.... लकीरों से... बहुत परे है... ये अहसास.... दिल से रूह का.... सुकून रखता है....
वक्त बे- वक्त उठाई कलम... स्याही से ज्यादा ... वो तड़प से भरी थी.... जज्बातों के अलफ़ाज़ बन... बिखर गई ,पंन्नो पर.... मानों किसी अपने से... मिलने की बैचेनी .... उसमें भी भरी थी.....