टूटी हूं मैं पहले से, अब और भिकरना नही चाहती।
थक गई हूं सबको मानाते, अब और कोशिश न करना चाहती ।
क्या कहे ज़माना, क्या होगा कल,
इन सब चिंताओं में,मैं और उलझना नहीं चाहती।।
चाहती हूं तो इतना बस,पापा की वोह प्यारी डांट।
माँ के गुस्से में छिपा वोह ढेर सारा प्यार।।
चाहती हूं तो इतना बस इस दिल का सुकून
टूटी हूं मैं पहले से,अब और भिकरना नही चाहती।
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