घर की खिड़की से अपने हिस्से का आसमान देख ले।
सुबह देख, साँझ देख, तारो से भरी चाँदनी रात देख ले।
माँ-बाप को देख, बैठ, दो पल बिता, उनकी हंसी मुस्कान देख ले।
किस्से सुन, कहानियाँ पढ़, नज़्मों के संग कुदरत की नई बहार देख ले।।
बचपन की ठिठोलियाँ, छुटपन के खेल, कुछ कविता गीत ग़ज़ल लिखकर देख ले,
ज़िंदगी के कुछ हंसी लम्हें, कुछ नींद कुछ बेचैनियाँ, ढेर सारा प्यार सहेज कर देख ले,
पंछी के फड़फड़ाते पंखों, नदी, पवन के झोंकों, सूनी राहों को देख ले।
कुछ भी कर, बस बाहर निकलकर ज़िन्दगी की मौत का खेल न देख ले।।
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