Suman Joshi  
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Joined 12 March 2018


Joined 12 March 2018
11 JUN 2020 AT 8:03

जमाने से लड़ती हूँ तुम्हें खुद में रखने के लिए,
लोग तुम्हें छोड़ने के तरीके गिनवाते हैं।
मेरे लिए तो तुम ही काफी हो,
तुम्हारा होके रहने के लिए।।

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27 MAY 2020 AT 23:16

औरत बिके तो तवायफ़।
मर्द बिके तो दूल्हा।।

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15 MAY 2020 AT 11:04

वे चल रहे है।
हम पेंटिंग कर रहे हैं,
खाना बना रहे हैं और सफाई कर रहे हैं।
वे चल रहे है।
हम ध्यान कर रहे हैं,
व्यायाम कर रहे हैं और
संगीत सुन रहे हैं।
वे चल रहे है
हम ज़ूम कर रहे हैं।
गेमिंग और नेटफ्लिक्सिंग कर रहेे हैं।
वे शायद नहीं पहुँच सकते हैं।
पर हम खो सकते है।
हम कभी एक नहीं होंगे।

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10 MAY 2020 AT 19:31

मेरे साथ लड़ती है, वो हर जंग मेरी...
माँ कृष्ण है मेरी, हर महाभारत की!

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24 APR 2020 AT 11:32

माँ और ज़िंदगी में
अंतर सिर्फ इतना है।
माँ माफ़ बहुत करती है।
ज़िन्दगी माफ़ नहीं करती।

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25 MAR 2020 AT 20:22

घर की खिड़की से अपने हिस्से का आसमान देख ले।

सुबह देख, साँझ देख, तारो से भरी चाँदनी रात देख ले।

माँ-बाप को देख, बैठ, दो पल बिता, उनकी हंसी मुस्कान देख ले।

किस्से सुन, कहानियाँ पढ़, नज़्मों के संग कुदरत की नई बहार देख ले।।

बचपन की ठिठोलियाँ, छुटपन के खेल, कुछ कविता गीत ग़ज़ल लिखकर देख ले,

ज़िंदगी के कुछ हंसी लम्हें, कुछ नींद कुछ बेचैनियाँ, ढेर सारा प्यार सहेज कर देख ले,

पंछी के फड़फड़ाते पंखों, नदी, पवन के झोंकों, सूनी राहों को देख ले।

कुछ भी कर, बस बाहर निकलकर ज़िन्दगी की मौत का खेल न देख ले।।

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6 MAR 2020 AT 17:25

यूं तो वाकिफ़ हूँ
जमाने के बदलते रंग से,
पर आज दुश्मन भी रंग लगा जाये,
तो आखिर बैर कैसा....!!??

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1 JAN 2020 AT 14:26

जब कभी भी तुम्हारी उँगलियों के बीच के फ़ासले को
मैंने अपनी उँगलियों से भरा है।
मुझे हर बार लगा
हमनें एक यात्रा पूरी की है।

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24 JUN 2019 AT 8:55

उलझी है तो उलझी ही रहने दो।
सुलझ गयी तो फिर क्या है ये ज़िंदगी ।।

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7 APR 2019 AT 9:15

किसी की ओर देखना कविता है
और किसी का चिंतन उपन्यास।।

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