ज़िंदगी नाराज है मुझसे ,
और मैं नाराज हूं ज़िंदगी से,
शायद अब दोनो एक दुस्ते को रास नहींं आते।
-सुman-
जब आपको किताब से इश्क़ हों,
और आपसे इश्क़ करने वाला,
आपके सालगिरह पर,
आपको किताब भेंट करे,
तो खुशी दुगनी हों जाति है,
और जब किताब के पहले पन्ने पे लिखा हों -
पत्नी के लिए।
तो मानो ज़िंदगी में अब पाने को कुछ बचा हि ना हों ।
"सुकून"
सुman-
जब आपको किताब से इश्क़ हो,
और आपसे इश्क़ करने वाला आपको किताब दे।
"सुकून"
- सुman-
जब आप किताब प्रेमी हों,
और आपके सालगिरह पर,
आपके जीवन साथी से आपको
किताब भेंट की जाये,
तो ख़ुशी दोगुनी हो जाति है
और किताब के पहले पन्ने पे लिखा हो-
पत्नी के लिए।
तो मानो ज़िंदगी में अब पाने को कुछ बचा हि ना हों।
-सुman-
एक पौधा या पेड़ 🤔
आज वो चला गया, हम सब की बहुत सरी यादों को लेकर, उस के साथ हमारी बहुत सारी यादें जुड़ी थी।
वो हमारे साथ बचपन से पला बढ़ा, और कद मे तो हम सबसे भी बड़ा हो गया, वो पौधा से एक छोटा सा पेड़ कब बन गया पता हिं नही चला।
आज उसके जाने के बाद घर बड़ा सुना लग रहा है, उसकी जगह बहुत खाली लग रही है, घर मे सबको बहुत दुःख हो रहा है, मानो घर का एक सदस्य चला गया हो।
पापा तो कई बार उनके हाथ की राखी उतारकर उसमे बाँध दिया करते थे।
उसे जाने देना सबकी मज़बूरी हो गई, माँ का कहना था उसे अपने र्कत्तव्य को पुरा करने के लिए जाना जरूरी था, वर्णा उसका ये जन्म युहीं व्यर्थ हो जाता।
उसी गमले मे वो एक बीज़ से छोटा सा पेड़ बन गया, अब उसकी बारी फल देने की थी जो उसका कर्त्तव्य था।
माँ ने अपने हृदय पर पत्थर रख कर उसे गांव भेजा
ताकि वो एक माँ से दूर होकर दुसरी माँ (धरती माँ) की गोद मे जा सके और अपने कर्त्तव्य का वहन कर सके।
जैसे एक माँ अपने बच्चो को बड़ा होने के बाद पढ़ाई या नौकरी के लिए दूसरे जगह भेजती है। उसे तो सबकी चिंता रहती है, आखिर वो तो माँ है।
|| एक माँ के नाम ||
:- सुman-
क्यूं कोई हमें हमारे जैसा निःस्वार्थ भाव से, निश्चल प्रेम नहीं करता ?
कितना सुकून होता ना उनसे दूर रह कर भी ऐसी ज़िंदगी जिने में ,
जिसमे कोई मेरे जैसा शिद्दत से, मुझे प्रेम करता .......
-सुman-
जिंगदी में, मुझे ऐसा कुछ भी नहींं चाहिए जिसपे किसी और का भी हक हो ।
फिर चाहे वो इंसान हो या फिर सामान ।
- सुman-
कितना समेटूं तुझे ये जिंदगी,
जितना भी समेटूं, तु बिखरती हिं जा रही है ।
-सुman-