हां जानती हूं तुझे.. पहचानती हूं मैं कि तेरे कितने रूप है.. तू मां के आंचल सा है...पिता के साये सा है...एक दोस्त की दोस्ती में है.. प्रेयसी की आंखों में है.. प्रेमी के हृदय में है.. कैसे ना जानूं तुझे..💫 🌺तू सृष्टि के हर उस कण में है जो इंसान को इंसान ही रहने देता है... .....तू प्रेम है..🩷
जितना नींव के पत्थरों से उपरी दीवारों की पकड़ मज़बूत होती है घर उतना ही मज़बूत होता है ... उसी प्रकार से हम सभी जितना अपने बड़े बुजुर्गो,संस्कारों और संस्कृति से जुड़े रहेंगे उतना ही उत्थान निश्चित है