युगों युगों का इतिहास है मुझसे
हर एक लफ़्ज़ का वास है मुझसे
कलम ने कहा जो सब रह गया
स्याही ने लिखा हर जज़्बात है मुझसे।
हर एक अभिलेख मुझसे है बना
ग़म ओ ख़ुशी भी मैंने ही कहा
लड़खड़ाती थी जुबां जब कहते हुए
ऐसी खबरों का भी हूँ मैं गवाह।
आसमां में अठखेलियां करने लगा
बच्चों ने उड़ाया और पतंग बना
वो कागज़ की कस्ती भी मेरी थी
भीग कर कुछ देर में डूबने लगा।
किसी को सच्चाई रास ना आई
ऐसी भीषण आग ज़माने ने लगाई
“सुकून“ की यूं तो कमी भी नहीं थी
बस थोड़ी सी कागज़ की दास्तां सुनाई।-
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अरसे बाद मिले कुछ याद ना रहा
एक पुराना झगड़ा था भूल ही गया।
बस वो दिखे और वही याद आए
वस्ल याद रही सब धूल हो गया।
सामने ही थी दुकान फूलों की
महबूब की पसंद का फूल दे दिया।
पतझड़ में सूखे गिरे पत्ते मुस्कुराए
“सुकून“ से दिल शबनम हो गया।-
ये भी कोई बात हुई!
हाँ भई, सच तो है
खुद से क्या मुलाकात हुई!
क्या इतने पहुंच गए
जो किसी की जरूरत नहीं!
लापरवाह इतने तो हम भी नहीं
बेशक ही दूरी खास रही!
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बहुत लंबा है रास्ता अब भी
अभी मंज़िल नजर नहीं आई।
एक इसी कमरे में सुकून मिला है
किसी और कौने में नींद नहीं आई
सांसों की महक है यहाँ पर हमारी
ये आवाज कहीं और नहीं आई।
सिलवट बन कर लिपटे हैं ख्वाब यहाँ
नींद बे–मुरव्वत यहाँ नजर नहीं आई।
इतनी मजबूत है नींव इस कमरे की
किसी रिश्ते में कभी दरार नजर नहीं आई।
दर्द था तो जीवन में था जो भी
बाहर आया तो सहूलियत नज़र नहीं आई।
दुनियाँ जहान की बातें कही सुकून से
सुकून खूब मिला चाहत नज़र नहीं आई।-
ग़मों का दौर शायद अब गुजर गया
तबाही का दौर शायद अब गुजर गया।
वस्ल का दौर लौट आया है फिर से
हिज़्र का दौर शायद अब गुजर गया।
ईमान से भरी दिखती है दुनियाँ अब तो
छल कपट का दौर शायद अब गुजर गया।
वो ज़िंदगी से डरी सहमी सी ज़िंदगी
मौत से मुलाकात का दौर शायद अब गुजर गया।
’सुकून’ से आ जा रहे हैं लोग फिर से
वो दहशत का दौर शायद अब गुजर गया।
फिर भी वक्त के नुमाइंदों पे यकीं कैसे करें
इत्मीनान का दौर शायद अब गुजर गया।-
मेरे हालात सुनकर तुम मेरा भी बोझ उठाती हो
इतना कब तक सह पाओगी अपनी भी नहीं बताती हो।
हालात तेरे भी कुछ कम नहीं पर तुम गहरी कुछ ज्यादा हो
मैं कह के हल्का हो लेता हूं तुम सुनके सोचती रहती हो।
पी लेती हो मेरे ही जाम से उसी में सुरूर आ जाता है
मैं रात भर करवटें बदलता हूँ मेरा रात में नशा उतर जाता है।
जिसके सहारे दिन गुजर रहे थे वो भी अब मुँह मोड गई
दुनियाँ ने कब का छोड़ा था सकी भी राहों में छोड़ गई।-
ख़स्तगी से बदन की हालत खस्ता हो चली
खैर, इसी के बहाने कुछ फुर्सत तो मिली।
निहाँ ना रहे बदन में कोई ख़स्तगी कभी
लम्बी ख़स्तगी से फुर्सत ही नहीं मिलती।-
लौट रहा हूँ धीरे धीरे ज़िंदगी की ओर
हाँ, अब आने लगा है ज़िंदगी खुशियों का दौर
कुछ घाव दिल पर नहीं शरीर को लगते हैं
ये घाव बड़े होकर भी अच्छे लगते हैं।-
इस ज़िंदगी में बेशक दिल का दर्द तुम हो
ज़िंदगी भर के लिए दिल का मर्ज तुम हो।
खफ़ा होने में गुजारा नामुमकिन ज़िंदगी का
जिंदा हूँ कि जुदाई का दर्द सुने वो तुम हो।
गर मर जाते तुमसे मिले बगैर ठीक ना होता।
जुदा होकर ज़िंदगी से मिलाने वाले तुम हो।
यूं तो दुनियां में कितने ही मरते रहते हैं रोज
पीकर ग़म–ए–जुदाई खबर बनाने वाले तुम हो।
यूं तो वस्ल में ही गुजारी है जिंदगानी हमने
ना हटो पीछे सूखा सज़र बनाने वाले तुम हो।
बिन आग भी जलाया आखिर जीवन भर मुझे
मेरा सुख चैन मेरा जीवन मिटाने वाले तुम हो।
तुम दुनियां से निकले जो मतलब से साथ रहे
’सुकून’ है आग के हवाले, मिटाने वाले तुम हो।-