चल रहा हूं ज़िन्दगी का हाथ पकड़कर,
सब का साथ छूट गया समय का साथ पकड़कर,
कोई साथ नहीं मेरे मैं तो अकेला ही सफ़र करता रहा,
जीवन की शुरुआत से ज़िन्दगी की सफ़र तक,
दुःख सहा,पीड़ा सहे,सहे मैंने ना जाने कितने सितम,
ना दोस्त रहा,ना कोई साथी रहा नाही कोई हमदम,
मतलबी है दुनिया ये मेरा खयाल था,
अरे खयाल क्या कहूं यारों,ये तो यकीनन जवाब था,
लिया सब ने मुझसे किसी ने कुछ दिया नहीं,
मांगा सबने मुझसे मगर कोई कुछ किया नहीं,
मैं क्या मुसाफ़िर कहूं खुद को ऐ यारों,
जिस सफ़र पर निकलना चाहता था वो सड़क ही मेरा नहीं,
मगर एक उम्मीद कि कोई ऐसा आयेगा,
मुरझाए बाग में अपने प्यार का फूल खिलाएगा,
महका देगा मेरे मन का बगीचा अपने बदन की खुशबू से,
संगीत कोई मधुर सा कानों में शहद सा छेड़ देगा,
वो आया भी वो ठहरा भी उसका प्यार मिला,
और वो बसा भी,
बस जिंदगी से जितने शिकवे थे मैं अब वापिस लेता हूं,
जिसको दे सकता हूं भरसम उतना देता हूं,
अब जिंदगी मुझे मेरी गुलज़ार लगती है,
आदमी हूं अकेला मगर प्यार से खुद को और भी सवार लेता हूं।
Happy international men's day 🙂
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