।।श्री।।
फिसल गया था हाथों से जो
एक प्यारा सा लम्हा था वो।
मखमली सेज़ पर सोया हुआ
मासूम सा बचपन था वो।
सोच कर उसे गमज़दा हो गए थे,
याद आयी थी खुद की तो जरा सा रो दिए थे।
सुरमयी अख़ियों से ओझल हुए ख़्वाब पर,
नन्हें पैरों की उस लंबी सी उड़ान पर,
ए दोस्त, न जाने क्यूँ हम कुछ़ ख़फा हो गए थे।
याद आयी थी उन लम्हों की तो जरा सा रो दिए थे।
©सुखदा
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