"एक मां की पुकार
कब जागोगे,अब तो बोलों
कितनी दामिनी, कितनी निर्भया,कब तक दम घुंट के मरेगी बिटिया?
अंतिम पल भी ना देख सके अपनी बिटिया को।
थक गयी है हमारी रूह जवाब देते देते प्रशासन और मिडिया को।।
कब तक धरना, मोमबत्ती यूं ही हाथों में जलेंगी।
भीष्म जैसी खामोश सरकार कब तक रहेंगी।।
धर्मद्वार बनाकर क्या करोगे,जब आंगन की सीता सुरक्षित ही नहीं।
शासन-प्रशासन तुम्हारी हमरी सुनें ना कोई,
मन विचलित क्रोध कुंठित हमारी रक्षित हीं नहीं।।
कब जागोगे...!
अधर पड़ीं हैं जिंदगी कब तक देखकर सहेंगे।
अपनी प्यारी को कब तक हाथों तलें रखेंगे।।
क्यों विरान पड़ीं हैं दुनियां खामोशी के मरु-बंजर से।
फूलों सी बेटी को बचा लो "सरकार"इस हैवानियत के मंजर से।।
आखिर कब...?
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