SUJEET KUMAR SHARMA   (SUJEET KUMAR SINGH)
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Joined 13 March 2020


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Joined 13 March 2020
21 DEC 2024 AT 13:16


बेहतर के चक्कर में बेहतरीन खो रहे हो
आहिस्ता आहिस्ता जिंदगी ये हसीन खो रहे हो
फंसकर इन उलझनों के चक्रव्यूह में
सरपट दौड़ती मशीन हो रहे हो।
खुशियों के चंद पल क्या मिले आवारगी में
अपनी रंगीन हो रहे हो।
ग़म की इबारतें लिख दी जो खुदा ने सोच
सोच कर यूं ही गमगीन हो रहे हो।
मिल जाओ कभी मुझसे खुल कर और
करो गीले शिकवे चाय पर
तो जिंदगी में सुजीत तुम मेरी हसीन हो रहे हो।
बेहतर के चक्कर में ..............

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1 MAR 2024 AT 19:46

ढले शाम को फिर तेरी याद आई।
ख्यालों में आकर वो मुस्कुराई।
रोका मैने उसको ख्यालों में इस कदर
जब हाथ में मेरे अदरक वाली चाय ☕🫖🍵 आई।

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19 JUL 2023 AT 23:47

क्या होता है बंगला क्या है कार
रिश्ते नहीं तोलता मैं करता ना व्यापार
किसकी कीमत है सुजीत और कौन है बेकार
मां की ममता और बाप का प्यार
इसी में बसता है मेरा छोटा सा संसार

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19 JUL 2023 AT 23:32

टूटे दिल 💔 को भी मनाना पड़ता है।
डूबते सूरज को देख कर भी टूटती
उम्मीदों को हर सुबह जगाना पड़ता है।
सुजीत होने से कुछ नही होता जिसे तुक्का
कहते हैं लोग उसे पाने में भी एक जमाना लगता है।

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5 JUN 2023 AT 23:45

हुस्न नाचता रहा नुमाइशें करता रहा
हर कोई अदाओं पे उसकी मरता रहा
दुनिया के बाजार में सजता रहा।
और कोई बेहुस्न बदसूरत ने आसमां
छू लिया सितारा गढ़ लिया ।
सुजीत चंद अक्षर ही थे उसके नसीब में
चंद अक्षरों को उसने पढ़ लिया
ढलती स्याह रात सा उसका मंजर
उगते सूरज सा चढ़ लिया ।
रोशनी में उसके मेहनत की वो हुस्न
तप लिया कुछ ढल गया कुछ जल गया ।
देखने वालों ने देखा की रस्सी जल गई
पर क्या बल गया ? 🤔

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7 MAY 2023 AT 13:16

यादों और ख्वाबों की
एक रेल सी बनी है
जिंदगी है सुजीत ये भी
एक जेल सी बनी है
खतरों का खेल है ये
खतरनाक खेल सी बनी है।
जो ढो रहे हैं जिम्मेदारियों का
बोझ उनके लिए कोल्हू के बैल सी बनी है।
कुछ तेरे फसाने है कुछ मेरी हकीकत
ये राब्ता राब्ता दोनो के मेल सी बनी है।
यादों और ख्वाबों की रेल सी
बनी है ..... जिंदगी एक जेल सी बनी है।

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8 FEB 2023 AT 21:42

कोई आपसे उम्मीद रखे न रखे आप खुद से उम्मीद जरूर रखें।
हैंना

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25 JAN 2023 AT 22:47

रात तो वक्त की
पाबंद है ढल ही
जाएगी।
देखना तो ये है की
चरागों का सफर
कहां तक है।

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24 JUN 2022 AT 20:51

आ चल जिंदगी फुरसत से बैठकर कुछ मसले हल करें,
शर्त ये है की चार कदम मैं तेरी और चलूं तो दो कदम तू
भी मेरी और चले।

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19 MAR 2022 AT 21:08

पहले लोग मरते थे,
फिर उनकी आत्मा भटकती थी,

अब आत्मा ही मर चुकी है
और लोग भटक रहे हैं।
SUJEET KUMAR SINGH

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