तुम, मुस्कुराते हुए, बेहद ख़ूबसूरत लगते हो, बिल्कुल जैसे कोई सूरजमुखी, खिल उठा हो बाग़ में बसंत की पीली सी छटा में मुस्कुराता हुआ, सबसे अलग़, सबसे ख़ास...! जी करता है तुम्हें खिला हुआ बस निहारता रहूँ, बिल्कुल वैसे ही, जैसे सूरजमुखी निहारता रहता है, सूर्य को, बिना पलकें झपकाये, एकटक, लगातार...!
मैं बताना चाहता हूँ मन की उलझनें तुम्हें, पीड़ा, अवसाद, कौतूहल करती बातें सारी...
मगर जब तुम पूछते हो "क्या बात है?"... सच कहूँ, मौन रहकर तुम्हारे हृदय से लगकर बस रो लेने का मन करता है...
फ़िर मैं भूल जाता हूँ, जीवन के कठोरतम एहसास को बेफ़िकर होकर बिसरा सकता हूँ संसार सारा और बस सिमट जाता हूँ उस क्षण में, जब तुम साथ होते हो, पास होते हो...
सूर्य के समान मेरे हृदय के नभ में दैदिप्यमान तुम, और एक धूमकेतू के समान तुम्हारे इर्द-गिर्द परिक्रमा करता मेरा आवर्ती प्रेम, जो तुम तक पहुँचने का अथक प्रयास तो कर सकता है परंतु जलता हुआ गुज़र जाता है, तुम्हारे समीप से, बिना तुम्हें स्पर्श किये...!