Sujay Tripathi   (सुजय)
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Joined 8 January 2018


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Joined 8 January 2018
14 APR AT 8:26

कभी मैं सोचता हूँ,
कि मैं लिखूंगा ख़ुद पर
तो क्या लिखूँगा...

तुम पर लिख-लिख कर,
मैंने ख़यालों की स्याही ख़त्म कर दी है,

क्या मैं ख़ुद को उस नज़र से देख पाउँगा,
जिस नज़र से मैंने देखा है तुमको,

क्या मैं ख़ुद पर लिख पाऊंगा,
कुछ ख़ूबसूरत सा,
जैसे लिख डाले हैं तुमपर
शेर, ग़ज़लें, कविताएं...

या फ़िर रह जाऊँगा तुम्हारी याद पर लिखता,
बेज़ार ख़यालों में खोया एक लड़का,
जो ख़ुद के लिये शब्दों को आकार नहीं दे पा रहा,

कुछ ऐसा लिखूँगा...?

-


6 APR AT 22:27

मैं एक मरुस्थल हूँ,
मेरी लिखावट में
सदा पानी का
ज़िक्र होगा,

मैं हूँ एक पथिक,
जो लिखेगा
छाँव के बारे में,

एक नाविक,
जो गाता है गीत,
किनारे से मिलने के,

बिल्कुल वैसे ही,
जैसे एक प्रेमी लिखता है
उस प्रेम के बारे में,
जो उसे नहीं मिला,
जब की वो उसका अधिकारी था..!

-


31 MAR AT 20:40

किसी दिन,
तुम्हारा चित्र हृदय में रखकर,
लिखना शुरू करूँगा एक कविता...

पर उसे अधूरा छोड़कर,
पन्ना फाड़ दूँगा,
और उसे छोड़ आऊँगा खुद से दूर,
बहुत दूर..

फ़िर एक दिन,
सड़क पर पैर घिसट कर,
चलते हुए, अचानक,
धूल, धूप, बौछार, और हवा
से मात खाया हुआ वो जर्जर सा पन्ना,
लिपट जाएग तुम्हारे पैरों से...

और उसे पढ़कर,
तुम्हारी आँखों से गिरा प्रत्येक ऑंसू,
पन्ने से लिपटकर,
पूर्ण कर देंगे मेरी अधूरी कविता,

और...
हमारा अधूरा प्रेम...!

-


23 FEB AT 1:17

रोज़ माँ से लड़ता था,
फ़िर भी आ जाती थी...
खाना लेकर, चादर ओढ़ाने, पानी देने...!

लड़ाइयाँ क्षणिक है,
ख़त्म हो जाती हैं,
प्रेम शाश्वत है,
रह जाता है...

मैंने माँ से जाना...!

-सुजय

-


14 FEB AT 16:14

तुम, मुस्कुराते हुए,
बेहद ख़ूबसूरत लगते हो,
बिल्कुल जैसे कोई सूरजमुखी,
खिल उठा हो बाग़ में
बसंत की पीली सी छटा में मुस्कुराता हुआ,
सबसे अलग़, सबसे ख़ास...!
जी करता है तुम्हें खिला हुआ बस
निहारता रहूँ,
बिल्कुल वैसे ही,
जैसे सूरजमुखी निहारता रहता है,
सूर्य को, बिना पलकें झपकाये,
एकटक, लगातार...!

#dedicated

-


31 JAN AT 23:23

मैं बताना चाहता हूँ मन की उलझनें तुम्हें,
पीड़ा, अवसाद, कौतूहल करती बातें सारी...

मगर जब तुम पूछते हो "क्या बात है?"...
सच कहूँ,
मौन रहकर तुम्हारे हृदय से लगकर
बस रो लेने का मन करता है...

फ़िर मैं भूल जाता हूँ,
जीवन के कठोरतम एहसास को
बेफ़िकर होकर बिसरा सकता हूँ संसार सारा
और बस सिमट जाता हूँ उस क्षण में,
जब तुम साथ होते हो,
पास होते हो...

कदाचित प्रेम यही है...!!

-


19 JAN AT 22:53

मैंने कभी नहीं माँगा अथाह प्रेम...

मैंने बस ये चाहा कि
मेरे हिस्से में आये प्रेम को
प्रेम से मुझे सौंप दिया जाये...

बिना किसी विभाजन,
बिना किसी साझेदारी के...

मेरा प्रेम मेरा रहे,
सिर्फ़ मेरा...!

-


15 DEC 2023 AT 23:12

तुम्हारे लिये,
ग़ज़लें लिखता रहूँगा, सुनाया करूँगा
तुम्हारी तस्वीर,
मैं बनाता रहूँगा, मिटाया करूँगा

तुम्हारा ज़िक्र,
जब भी आएगा महफ़िल में कभी,
दिसंबर की तरह
वहाँ से ख़ामोश गुज़र जाया करूँगा...!

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7 DEC 2023 AT 11:08

तेरा चेहरा इन आँखों में पुराना हो गया है,
मिलो फ़िर, कि तुम्हें देखे ज़माना हो गया है...

सुना है रात को डर है बहुत ढलने का अब
सुना है चाँद भी तेरा दीवाना हो गया है...!

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13 OCT 2023 AT 8:00

//..धूमकेतु..//

सूर्य के समान
मेरे हृदय के नभ में
दैदिप्यमान तुम,
और एक धूमकेतू के समान
तुम्हारे इर्द-गिर्द परिक्रमा करता
मेरा आवर्ती प्रेम,
जो तुम तक पहुँचने का
अथक प्रयास तो कर सकता है
परंतु जलता हुआ गुज़र जाता है,
तुम्हारे समीप से,
बिना तुम्हें स्पर्श किये...!

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