रोज़ का यूं रूठना मनाना चलता रहा
हमें लगा रिश्ता हमारा गहरा हो रहा।
अजीब-सी कुछ आवाजें आई एक दिन
जब ग़ौर से देखा तो टूटा हुआ दिल मिला।-
थक-हारकर तुमसे बैठ जाते हैं सबसे दूर जाकर किसी कोने में ।
फिर उठ खड़ा हो जाता हूं, तुम्हारे और चल देता हूं तुम से मिलने के लिए ।-
आखिर तुम भी आ गई मेरे बिस्तर-ए-मर्ग में
आ जो गए हो, मेरे इश्क़ भी तस्लीम कर लो।-
भुला दिया है उसे ये कहना काफ़ी नहीं होता
बिन आंसू बहाकर रात को सोना भी होता है-
छोड़ दिया था जो शहर हमने आज़ वह मेरा घर बन गया
एक तेरे खातिर हमने वो मुश्किल दहलीज़ पार कर लिया।-
हजारों पत्थर फेंके लोगों ने, फिर भी एक खरोंच नहीं आईं
एक नज़र जो देखा उसने ताउम्र के लिए घायल कर दिया उसने— % &-
नशा शराब का होता, तो एक पल में उतर गया होता
इश्क़ का नशा है, आखिरी सांस तक नशें में रहना है — % &-
ख़ामोश है जिंदगी मगर शोर बहुत है
कैसे सुनाएं वो शोर जो ख़ामोशी ने मचाई है — % &-
हंस लें कोई मेरे नादानियों से वह नादानी मुझे पसंद है
रो ले कोई 'गर कोई मेरे समझदारी से ए-रब मुझे मौत दें दें — % &-
तु नहीं मेरा मगर तुझे खोने से फिर क्यों डरते हैं
तकल्लुफ सी तेरी अदा को क्यों वफ़ा समझ रहे हैं— % &-