नायाब तोहफ़ो की इच्छा रखना
इतने मतलबी तो नहीं है ,
अब सोहबत में तुम पसंद भी ना जान पाएं
इतने अजनबी तो नहीं हैं।।।
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🔶Believe in reality
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कितना कष्ट देना पड़ता है ना, इस कंठ को कंठस्थ के लिए ।
किंतु मैं फिर भी मौन हूं अक्सर बिसरना जताने के लिए ।।-
वैसे रात के वक्त चाय का मजा अलग है...
जैसे मन की सूखी मिट्टी पर पानी की बूंदों के समान छिड़की गई हो चाय की कुछ चुस्कियां ,
जिससे महका होगा मन के भीतर का एक गहरा कोना।।-
उसने इत्र से महकाया था अपने चरित्र को ,
आज उसी की खुशबू से स्वयं की पवित्रता को नष्ट होते देखा हैं।।-
मैं और वो एक किनारे खड़े थे
लहरें मेरे पैरों को छू कर भाग रही थी,
मानो जैसे खेल रही हो कबड्डी,
मैं कहीं माहिर नहीं , हर चीज में था फिसड्डी।
पर उन लहरों का मुझे यू छूकर हराना शायद मुझे जिताने की कोशिश थी
क्योंकि उनका यू छूना ऐसा लगा जैसे वह मेरे जहन को चुकोटी काट रही हो
उनका मेरे पैरों की उंगलियों के बीच से गुदगुदाते हुए गुजरना मेरे भीतर के इश्क को जाहिर कर रही थी
मैंने अपनी भावनाओं को अल्फाजों में बताने के लिए नजरें उठाई,
तो देखा उन्हें सांझ का डूबता सूर्य पसंद आ रहा था और हमें उनकी आंखों में डूबना। बस उस सूरज के साथ कब मेरा इश्क डूब गया, मुझे पता ही नहीं चला।
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बेशक अंग्रेजी सा कोई भी आ जाए तेरे जीवन में
लेकिन तेरा ज़हन जिस लहजे में सोचे
मैं इश्क उस हिंदी सा बनना चाहता हूं ,
तुझे मोहब्बत है जिस जिस से
मैं वो इश्क तेरा काजल और माथे की बिंदी सा बनना चाहता हूं।-
अक्सर दिन में , मेरे सहजता से काजल लगाने की कला से वाकिफ लोग , अनजान है इस बात से कि उसी कला से मैं रोजाना रातों में विफल रही हूं।
मैंने अक्सर खुद की उंगलियों से स्वयं की कला को धाराशाही करते हुए देखा है ,
दिन की सुंदरता को अंजाम के रूप में अखियन के नीचे फैलते देखा है।
बड़ा पेचीदा सा है ना ? किंतु सत्य है! सत्य है , जब सोहबत में हजारों के बावजूद आपको लगने लगे कि
कल दोबारा इस काजल को पुनः बिठाना है,
रातों की कालिख को एक बार फिर छुपाना है ।
तब समझ जाइए । समझ जाइए , जब तक यह काजल सहजता से आंखों में है तब तक हजारों अपने हैं। जैसे ही ये कालिख के रूप में इन अखियन में छाएगा,
हर कोई दूर जाएगा,
और चाह कर भी ना जा सकने वाला आपको जीने के पैंतरे बताएगा। किंतु नहीं ! वहां आपको पुनः अपनी आंखों को सजा लेना है ,
अपना दर्द तुरंत छुपा लेना है, किंतु बदलना नहीं है। बदलना नहीं और बदलना भी है तो बदलो सोहबत अपनी , अपनी सहजता नहीं।।-
कितनी झूठी हंसी हंसनी पड़ती है ना ?
जब लोग आपकी कलम की तारीफ कर रहे हो ,
और आप उसके उठाने का कारण दिल में दफनाए बैठे हो।-
मैंने सत्य को घुटते देखा है,
मैंने वफाओं को लूटते देखा है।
जो कहते हैं जरा हमारी जगह पर खड़े रह कर तो देखो,
मैंने उन्हें भी स्वयं के स्थान से पीछे हटते देखा है।।-
मणिकर्णिका..... एक प्रेम
मैं प्राणदायिनी शीतल जल की, तृप्तदायिनी धारा हूं
मैं कारण सुख-संचार की, मोक्षदायिनी किनारा हूं।
अनंत शवदाह समेटे, मैंने प्रेम उसी से किया है
अग्नि लपटों को लपेटे ,अपनी लहरों को उसके किनारे से सीया है।
जब विश्वनाथन रूप में आए बाबा, ले जाने मां गोरा की डोली
तब से मेरे प्रेम को, प्रेम है भस्म राख से खेलना होली ।
चैत्र की हर नवरात्रि, नगरवधू के नृत्य से गूंजे उसके आंगन है
प्राप्ति हेतु मोक्ष की, पवित्र यह प्रांगण है ।
अनंत अघोरियों का तुम साथ, मोक्ष हवाओं को लपेटे हो
विष्णु कुंड के तुम रचयिता, पार्वती के कर्णफूल को समेटे हो ।
मेरा प्रेम वहां का वासी , जिसे कहते ही हैं मोहब्बत का शहर ,
वो बनारस का मणिकर्णिका घाट, मैं गंगा सी
जो समक्ष हैं उसके आठों पहर।।-