शय मुकम्मल होती है माहौल माकूल होने से
गोया एक पैर का जूता भी दूसरे में नहीं आता-
#Delhi Metro #
#lifeisunfairsometimes #
शय मुकम्मल होती है माहौल माकूल होने से
गोया एक पैर का जूता भी दूसरे में नहीं आता-
मेरे सिवा कोई और क़त्ल ना करेगा रक़ीब का
मेरे माशूक़ को किसी बात की तो तसल्ली है-
इंतज़ार करूँगा तेरा जाना आख़िरी सलाम आने तक
कच्चे अमरूदों के मौसम से पके आम आने तक-
जो भी उलझन में हो हमारे वास्ते को लेकर
मेरे लबों के आबले तेरी ज़बाँ पे देख ले-
कलम से उसे सरापा बना तो दूँ मगर
मेरी मजबूरी मेरे शायर होने पे हायल है-
पानी देता रहा मैं दीवार में दरार आने तक
शॉल ओढ़े रखी मैंने उसके बुखार आने तक-
यार सुनने आयेंगे दास्तान-ए-वस्ल उस रात की
सो शब के चाल मलबूसों को जल्दी जल्दी सिया करो-