पहल पहले करनी थी,बाद में पछतावे ही रह जाते हैं,
दिल की बात जुबां से नहीं,पर ये इशारे कह जाते हैं।
तुमको तो मालूम था,अब हम अजनबी नहीं रह गए,
फिर भी न जाने,क्यों मिट्टी के बने आशियाने ढह गए।
दो कदम तुम चलते,साथ हम भी देते, यही बात थी,
या फिर हमारे हिस्से,यही चंद पलों की मुलाकात थी।
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चांद को देखकर मोहब्बत शुरू,बातें फ़िर होती दिल ही दिल में।
चांदनी रात का सुकून,सिमटता है इश्क़,महबूब के
जुल्फों और आंचल में।
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कहां तक समेटोगे लफ्ज़ों को,पन्नों पर लेकर आओ,
दिलो दिमाग की तमन्नाओं को,तुम रंग नया दे जाओ।
चाहतें अभी चलना शुरू हुई हैं,चाहो तो आजमाओ,
कुछ कदम हम चलेंगे,कुछ तुम आकर हाथ बढ़ाओ।
सफ़र की शुरुआत करनी है,राहें ये आसान बनाओ,
बनकर मुसाफिर साथ चलो, हमसफ़र मेरे बन जाओ।
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जब से हम आपके शहर में आए हैं,क्या बताएं..
मिलो तो लो सही बाहर ही कहीं, बैठ बतियाएं।
घर न बुलाना,पर गली तो पता चले,क्या बताएं..
अनजान रास्ते अजनबी हम,राह भटक न जाएं।
शिकायतें भी बहुत सारी,ये बेकरारी,क्या बताएं..
होगा हल, कि मिल पल दो पल,आज सुलझाएं।
तुम फिर न कहना,चुप भी न रहना,क्या बताएं..
पास से गुजर गए, जाने किधर गए खामखांएं।
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कोई तो हो जो हाल पूछे,मुझ नाचीज़ का,
आज भी मोहताज हूं,मैं किसी अज़ीज़ का।
फ़िक्र करे कोई मेरी भी,मुझे मशविरा देकर,
बैठा हूं तन्हा बहुत सी मुश्किलें अकेला लेकर।
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न रातें सोने देती हैं,ना दिन में सुकून मिल पाता है,
अजीब लगता है जमाना,जब इश्क़ पनप जाता है।
राहें अनजान लगती हैं,मंजिल मिल नहीं पाती फ़िर,
"जाम"जाम न रहकर के,फ़िर हाथ से छलक जाता है।
कश्मकश में डालकर मुझे,महबूब ख़ुद चैन से सोता है,
जगाकर मुझको रात भर,यादों में खूब बतियाता है।-
उम्मीदें जब साथ छोड़ दें,
तो किस्मत गुनहगार नहीं होती शायद।
मिलके भी जो दूर रहे तो,
उससे गिला किया नहीं करते।
गैरों से हो जब अपनापन किसी क़रीबी का,
तो ठीक ही है।
शिकायतें उसकी पर अपनों से भी,
फ़िर किया नहीं करते।
साथ देगा जो थोड़ा वक़्त ही तो देगा,
फुसरतों में आकर।
उसे कभी भी किसी काम का,
मना किया नहीं करते।
हम तो दरिया हैं,
दरियादिली हमारी देखी कहां है आपने।
मिट्टी के घड़े से बराबरी,
हम अपनी किया नहीं करते।-
दूरियां बेहतर हैं,अगर सही मायने से देखा जाए,
क़रीब रहकर जुदाई का अहसास नहीं रहता है।
मनाना-रूठना भी वाज़िब होता है मोहब्बत में,
ठहरा-सा पानी ये इश्क़,नदी सा थोड़े बहता है।-
ख़ुद जीतकर मुझे हरा दो,ये हमें मंजूर है,
मिलते रहना लेकिन घर नहीं हमारा दूर है।
करना कोशिशें दोस्ती का साथ न छूट जाए,
हर मौसम जिंदगी में आपके खुशनुमा आए।
कदर करना हर किसी की जहां खुशी मिले,
मैं खरा उतरूंगा उम्मीदों पर छोड़कर गिले।
नए रिवाजों में रहकर,बस दिल से न भुलाना,
मेहमान की तरह ही रहेगा अब आना-जाना।
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यादें बेहिसाब आ रही हैं कि अब दूरियां मिटा दो तुम,
क्यों गुफ्तगू दूर से ही आजकल,होकर मायूस गुमसुम।
तन्हाइयों से मन भरा,आकर महफ़िलें सजा लो अब,
अंधेरों से दोस्ती न हो जाए मेरी,यूं न बढ़ाओ तलब।
बेफ़िक्री छोड़ कर सारी,शिक़वे आकर मिटा दो आज,
यूं इस तरह से थोड़े न होते हैं अपने,अपनों से नाराज़।
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