Sudhir Saini   (Saini sudhir)
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Joined 5 April 2018


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Joined 5 April 2018
31 MAR AT 18:38

बनकर आया था सिर्फ़ परछाई या हमदर्द और तलाशुं मैं,
अंधेरे में फ़िर रहकर अकेला,कैसे छुपाऊं अपने आँसू मैं।

तलाशती हैं आज भी नज़रें,उसकी निगाहें हों मेरी तरफ़,
पन्नों पर तारीफ़ें लिखूं,लेकर उसके चेहरे से एक एक हर्फ़।

बाक़ी फैसला उनका ही,मनमर्जियां हम ज़ाया करें भी कैसे,
वो तारीफ़ों के हक़दार ठहरे,हम तो यूं ही हैं बस ऐसे-वैसे।

क्या ख़बर किसे यहां कल की,अजी कोई थोड़ी जानता है,
ख़ैर,सुबह का भूला ही तो शाम को घर आने की ठानता है।

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17 FEB 2023 AT 19:04

महसूस करना दिल से कभी,पता चल जायगा कौन हूं मैं,
बोलना चाहता हूं तुझसे बहुत कुछ,सोचना पर मौन हूं मैं

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1 FEB 2023 AT 14:23

बीहड़ों से गुजरकर अंधेरों से निकला हूं अकेला,
ज़रा-सी रोशनी होती,तो सफ़र कुछ औऱ होता।

कुछ न कुछ हासिल ही होना था मुझे उस दौरान,
या यूं कहिए कुछ नया मिलता,कुछ पुराना खोता।

न मंज़िल की चाह,अजनबी सड़कें,ये कच्ची राह,
जहां मिले ज़रा सी छांव,बस कुछ पल हूं मैं सोता।

बदलकर पुराने वक़्त को,नए दौर की तलाश में हूं,
हालातों के आगे मैं,लेकिन अब कभी नहीं रोता।

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10 NOV 2022 AT 17:30

यौरकोट एप्प की वजह से ही
हमने लिखना शुरू किया था।

लेकिन अब बंद होने से कारण
हम writco app पर हमारे
Next quote पोस्ट करेंगे।

शुक्रिया यौरकोट हमें बेहतरीन
दिशा प्रदान करने के लिए।

❤️❤️❤️❤️📒🫖☕📒📒

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31 OCT 2022 AT 19:14

लिपटकर कोहरे की चादर से,कब तक तरसना पड़ेगा,
ए-हरजाई बादल,एक न एक दिन तुझे बरसना पड़ेगा।

दिल को उम्मीद है काफ़ी,शायद ज़िद पर अड़ना पड़ेगा,
इंतज़ार से भरे अरसों से अब,ख़ुद-ब-ख़ुद लड़ना पड़ेगा।

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30 OCT 2022 AT 21:17

मैं धूल का एक हिस्सा,मुझसे भी बड़े यहां तजुर्बेकार बैठे हैं,
वो बुलंदियों के बादशाह उन्हें जीत हासिल,हम हार बैठे हैं।

सुलगती हुई आग के क़रीब हम,बुझी हुई लेकर खार बैठे हैं,
वो मिले आख़िरी मुलाक़ात ही हो भले,हम तलबगार बैठे हैं।

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28 OCT 2022 AT 21:23

बड़ा मुश्किल होता है सफ़र,जिंदगी की तंग गलियों का,
क्या हाल होता है बिन माली के,खिली हुई कलियों का।

बड़े सलीक़े से रास्तों से,हां,कभी-कभी गुजरना पड़ता है,
हालातों के चलते भी तो यहां,वादों से मुकरना पड़ता है।

इश्क़,मोहब्बत की बातें छोड़ो,कुछ हासिल नहीं होता है,
सुख-दुःख में भी हर कोई आजकल शामिल नहीं होता है।

अपने उसूलों से ही जिओ तो सुकून यहां मिल ही जायेगा,
ज़रा थोड़ा सब्र भी कीजिए,वक़्त ही है एक दिन आएगा।

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28 OCT 2022 AT 21:17

बारिश तो आज भी होती है,मेरे गांव में वही पहले जैसी,
पर अब मिट्टी की उस सौंधी सी खुशबू को तलाश रहे हैं।

ख़ुशी के पल न जाने कहां बचपन के मिट्टी में मिल गए,
उन्हें ढूंढ़ते हुए हम,इस उम्र के पड़ाव में भी हताश रहे हैं।

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16 OCT 2022 AT 22:28

क्या क्या रंग दिखाएगी तूं मुझे,ज़रा ये तो बता मुझे,
मुफ़लिसी की ज़िंदगी न जीने देती है,न मरने देती है।

मैं कब तक अपनी मनमर्जियां चलाऊं,नहीं जानता,
हर काम भी अपने मुताबिक़ न मुझे ये करने देती है।

हर ज़ख्म भी हर किसी को दिखाएं कैसे अब अपने,
उधड़े ही हैं बरसों से,अब कहां ये इनको सीने देती है।

जब कभी मन करता है मयखानों की ओर जाने का,
कमबख्त कहां मुझे फ़िर जाम पर जाम पीने देती है।

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16 OCT 2022 AT 0:26

कुछ हद तक राहत दे जा,मेहंदी की तरह ही रचकर सही,
मुझे लगने लगा है शायद कि वक़्त मेरे पास है इतना ही।

हाथों को फ़िर मैं रोज़ाना देखूं,फ़िर अंदाज़ तेरा देखूं वहीं,
फिर छूट जायेगा आहिस्ते से रंग,डर भी एक सताए यही।

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