अच्छा होता मैं पंछी बन जाता नभ-चर बन उन्मुक्त गगन में मन-भर पंख फैलाता..... बड़े घने काले मेघों से रोज-रोज बतलाता........ ।काश मैं भी पंछी बन जाता...... ।
दूर कदम्ब से मुक्त पवन में सूर्य उदय से सूर्य अन्त तक बिना भय के काल-अन्नत तक..... मन-भर पंख फैलाता.....।काश मैं भी पंछी बन जाता...... ।
छन-भर खाता मन-भर खाता पंख फैलाकर फिर उड़ जाता प्यास लगे तो जाकर किसी आंगन में नीर-चोंच-भर इठलाता..... ।काश मैं भी पंछी बन जाता...... ।
होता दूर सब शर्म-लिहाज से बुरे समाज के रिति-रिवाज से धर्म-जाति और अंधविश्वास से मतलब को बनते जो रिश्ते-समाज से दूर होता मैं.... मै-मै के राज से.....।काश मैं भी पंछी बन जाता...... ।
जब मुहब्बत छुप कर की, तो दर्द क्यों दिखाऊ बरबाद मैं हुआ, ये सबको क्यों बताँऊ उसकी यादें, किस्से सब मेरे है, मेरी मर्जी जनाब, मैं इन्हें खैरात मे क्यों लुटाँऊ... ।।
जब, हमारा क़िस्सा नामवरी हो जाएगा, तुम्हें भला, बुरा हमें कहा जाएगा, दुनिया चाहें जो कहें हमें फ़िक्र नही, हम खुश है कि, मेरा ज़िक्र तेरे साथ किया जाएगा।।