Sudhir Kumarr   (Silent_whisperer_)
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Joined 23 June 2017


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Joined 23 June 2017
23 SEP 2024 AT 18:25


अल्फाजों में सिमटकर मै ठहरना चाहता था, लेकिन वक्त का करिश्मा तो देखो, मिलने के लिए,
आज उमर की चौखट पर लाकर खड़ा कर दिया ।।

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21 SEP 2024 AT 16:36

कपड़ों के बीच की सिलवटें खत्म ही ना हुई, और हम दरिया में किनारे की वाहमियत में थे ।।

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5 SEP 2024 AT 14:07

कहानियाँ सिर्फ किताबों से नही पढ़ी जाती, तजुर्बों से भी पढ़ी जाती हैं !

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24 AUG 2024 AT 2:07

It's not about loving one to one thousand different women or men,

but it's about felling in love with same women or men in one thousand different ways

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17 DEC 2023 AT 10:36


लोगों को बातें में रहकर धोखेबाज बन गया,
अगर इश्क था, तो पल पल कांटो से क्यों डरता था,,
खून बहना हो या फिर आंसू,
इस्तिलाह किया था रब से हदे ना मानने की,
ना कोई कंजूसी कि इसने,
तक़दीर में क्या लिखा है, ना उसे पता है, ना इसे ।।

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17 DEC 2023 AT 9:44

रब को घर पर उतरने में,
वक्त जरूर लगता है,
मर गया था गालिब जो, ज़िंदा होने में,
वक्त जरूर लगता है।।

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16 DEC 2023 AT 15:47

लोगों के विचारों का उधार लेकर अपने जिंदगी का निर्णय करना शायद, समझदारी होती होगी ।।

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19 OCT 2023 AT 23:38

क्या वक्त मजबूर था ?
क्या मैं अपनी सांसों को खोता गया जिम्मेदारियों के लिए?
कभी उस दोमुही तलवार को,
सोचता हूं,
भविष्य का छत मैं गड़ रहा,
लेकिन, ना रोक सका उलझनों के पत्थरों को
यहां वर्तमान में घुसने से,
यही सोच कर खुदी से बात मै, करता हूं,
क्या, इश्क जिम्मेदारियों का संचालक नहीं?
है अगर, तो घुटन क्यों है, अब दूरी से ?
क्या, एक अवसर वह भगवान न देगा?
या, अंबार सिर्फ गलतियों का खड़ा रखेगा ?
है वह, बिच्छेद आसान,
लेकिन धैर्य सन्धि लाता है,
तोड़ सकता है, कोई भी,
लेकिन बना सिर्फ़ कारीगर ही सकता है ।।





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19 OCT 2023 AT 21:56

वो नासमझी थी मेरी,
ना रह सका तुम्हारे साथ,
वह कोलाहल में पंथ चंचल
ना सुन पाया हो अधीर,
साथ हो हम डगमगाए,
एक जो सुदूर सच था, फिर धुंधलाया,
पगडंडी पर खड़ा, फिर मैं दगमगाया,
गहराई बड़ी ना संभाल पाया,
किसी और को छोड़ बदलाव खुद में,
यही मैं देखता हूं,
मौन रह सब सुनता हूं,
और वक्त बिता बुरा था, यही मैं मानता हूं,
भूतकाल में रह भविष्य न देख पाता हूं,
अकेला रह कोने में बातें टटोलता हूं,
दिल से बुरा ना था कभी, भी यही बोलता हूं,
लेकिन, क्या यह आसान होगा ?
विश्वास सा जब टूट रहा,
क्या सच, क्या झूठ?
आखिर, कौन फैसला कर रहा?
क्या सही, क्या गलत?
आखिर एक मसला पैदा हो रहा,
तो फिर, क्यों एक आशा की किरण हतेली पर मेहसूस मैं करता ?



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18 OCT 2023 AT 12:06

विध्वंश

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