क्यों क्यों सताते हो हमको जो अनजाने में लिखी गई थी यह कहानी क्यों याद दिलाते हो हमको जब चली हवा कहानी के पन्ने हवा मे उड़ गऐ शायद जिस पुस्तक का अंश थे उससे जुड़ गऐ बेवजह फिर क्यों याद दिलाते हो हमको की कोई कहानी लिखी थी तुमने क्यों यह बताते हो हमको
वह सोचते थे होंगे पता नहीं कहां गया बहुत बातें करता था मुझे से शायद कहीं गुजर गया वह नहीं जानते वह एक सुखा कुआ था जो तेरे प्यार से भर गया शायद इसीलिए पागल जीते जी मर गया सोचते होंगे पागल था पता नहीं किधर गया उसकी किस्मत जिधर गया उधर गया पर वह नहीं जाने मेरा भी वक्त उसकी यादों के संग गुजर गया इसीलिए शायद उठा ज्वार भाटा समुद्र में खारा पानी मेरे होठों तक गया देख खारे पानी संग मेरा वक्त भी गुजर गया
मैंने तन्हाई में वक्त की टिक टिक से बातें की है मैंने बादलों में बनती तेरी तस्वीरों से बातें की है मैंने अपने हाथों की लकीरों से तेरे बारे में बातें की है तुझसे मिलकर तेरे दीदार की क्या खाक तमन्ना होगी मुझको मैंने तो हर वक्त धुवे में बनती तेरी तस्वीर से बातें की है तू सोचती होंगी मैं बुजदिल मौत से डरा खामोश हुं पर तू नहीं जानती मैंने कई बार यमदूतो से बातें की है तू कैस की लैला रांझा की हीर हो फारद की सीर हो पर मैं नही राधा कृष्ण की चाहत की जो मुझ में पीर हो