गुजरे हुवे अखबार सा भुलाए हुवे लोग
हम हैं तमाम उम्र के सताए हुवे लोग
खामोश दास्तां है कोई सुनता नहीं हमे
अपने ही जख्म पे मुस्कुराएं हुवे लोगे
सेहरा के फूल हैं खुशबू की अब तलब नही
दिल की इस जलन में यूं जलाए हुवे लोग
हम हैं तमाम उम्र के सताए हुवे लोग
............ कुमार सुधि...........
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सारा सब सुकून से गुजरी है
एक मिठास घुलती रही है सारी रात
धूप आज खिड़की पे मुस्कुरा रहा है
एक निशा प्यार का अब तलक है
बिस्तर की सिलवटों में
फिर सारी रात सोया रहा
थककर
वो चांद मेरे कांधे पे........
........... कुमार सुधि.......-
तमाम उम्र भटका है दिल
एक पुरजोर शुकून की तलाश में
मगर मिला है सिर्फ
तो
कहीं भीगी सड़क पे चलते हुवे
तेरे नर्म उंगलियों की छुवन के एहसास में
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सर्द मौसम है
और बारिश भी
मगर तुम्हारे प्यार की गर्माहट
साथ है मेरे
सड़क भीग रहा है
दो हांथ चल रहे हैं
एक दूसरे में उंगलियां उलझाए
प्यार का एहसास नर्म है शायद
मेरे दिल मे अब तक
___कुमार सुधि_____-
क्या बताएं
क्या शिला मिला है
प्यार में
लूटे लूटे से चेहरे
फकत चार आंसू
एक उम्र गुजरी है
इंतजार में
।।
____ कुमार सुधि___-
कभी तो तेरे जिगर में भी
मुहब्बत का खंजर उतरेगा
देखना एक दिन
तेरी आंखो में मेरी तरह
समन्दर उतरेगा
...... कुमार सुधि.....-
अब कहां ढूंढूं ऐसे लोग ख्याल करने वाले
तुम ही हो जो निकले इस्तेमाल करने वाले
अपना हाल ए दिल अब छुपाऊं तो कैसे
शहर भर के लोग है बस सवाल करने वाले
तुम अपनी जगह ठीक हो हम भी बेवफा नहीं
फिर कौन है ये मुहब्बत पे बवाल करने वाले
तुम ही हो जो निकले इस्तेमाल करने वाले
........कुमार सुधि.........-
अब लोग तो पूछेंगे ही सवाल
क्या कहिएगा
खामोशी में जीना है मुहाल
क्या कहियेगा
लब तो ख़ामोश ही होंगे
आंखों से जानिए हाल
तो कहिएगा
अब खींजा के फूल समेट ली
सूखे जर्द पत्तों सी है हाल
क्या कहिएगा
खामोशी में जीना है मुहाल
क्या कहिएगा
........ कुमार सुधि.....-
लपेटता हूं मै तेरी यादों के नर्म
ऊन के गोले को
इस सर्दी एक स्वेटर बुनना है
तेरे प्यार के रंगों वाला
तू नहीं तो ना सही
पर तेरे प्यार की गरमाहट
और ये नर्म भीगी सर्दी तो
मेरे अपने होंगे....
...... कुमार सुधि.....-
जाने हम कैसे किसी अफसाने की बात हो गए
हाय!!!
उनकी खातिर हम
जाने किस ज़माने की बात हो गए
....... कुमार सुधि........-