सुधीर पांडेय युवा अधिवक्ता  
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Joined 6 April 2020


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Joined 6 April 2020

अर्सा हो जाता है,खुद से,
न होती अब मुलाकात है।
चलती थकती इस जिंदगी में,
किसे बताऊ अब क्या बात हैं।।
फर्क़ नहीं पड़ता अब,
कि कैसे य़े ज़ज्बात है।
दिन तो दिन ही सही,
कामों से ही अब रात हैं।।

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मेरे हर दिन की जो शुरूवात कहे
बिन बोले जो रात कहे
तू ही सन तो तू ही मून है
तू पास है तो बस सुकून है

झुका लिया मैं इस मस्तक को
जो पहुँच सका मैं तुम तक तो
आंधी ओले से न रूकने वाले
किसी से न हम झुकने वाले
क्या मई क्या जून है
तू पास है तो बस सुकून है

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व्यक्ति चुने उस बादल को।
जो गरजन की झंकार करें।।
संघर्ष चुने उस बादल को।
जो बिन गरजे संहार करें।।

जिसने परचम गाड़े है।
उसी को जग ने जाना हैं।।
हल्के हल्के झोकों से।
बस तुम्हें भय नहीं खाना हैं।।

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कभी बैठ कर एक साथ राष्ट्रीय गीत गाए जाते थे
हम उनकी ईद तो वो हमारी दीवाली मनाते थे
अमन के इस देश में, धर्म-जाति के फूट डाले जाते है
सौहार्द की नाकों पर, धर्म विरोधी जुमले बोले जाते है
क्या सोचा होगा फिरंगियों की गोली खाने वालों ने
क्या बेच चुके है अंतरमन को ये बोली बोलने वालों ने
बस करों इस झूठी शान को, सब यही छूट जाना है
जो विदा हुवे इस जग से तो कहां लौट कर आना है

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मेरे फेरों में तुम सात नहीं आठ हो जाओं
मेरे आँगौछे के कोने की गाँठ हो जाओं
मेरे ही प्रेम में, बस गुमसुम हो जाओं
जल्दी से मेरे नाम की कुमकुम हो जाओं

प्रेम की अर्जी लेकर कोई भीतर न आ पाए
ऐसा विशाल सा द्वार बनों
मोती से जड़े उन कपड़ों मे,
तुम हीरे जैसी क्षृंगार बनों

हे मेरी प्राणप्रिये
तुम मेरा पहला अंतिम प्यार बनों
फिर कोई अप्लाई न कर पाए
ऐसा इश्तिहार बनों ।

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अभी तो मिली हो, अभी ही जाना है
थोड़ा तो रूको, हमे इतिहास बनाना है
तोड़ न पाये हमे कोई, ऐसे साथ निभाना है
रिश्तों की बंधती डोरी पर बस एक गाँठ लगाना है

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तुम्हारी नाराजगी में भी, अब मिठास होती है
कुछ भी हो, पर बाते सब खास होती है
कही भी रहूँ, पर तुमसे ही हर रात होती है
अब तुम्ही से, हर दिन की शुरूवात होती है

जिन बातों में आप आए
उनमें फैसले झटपट लेता हूँ
तेरे यादों को सजाए
मैं रातों की हर करवट लेता हूँ

कैसे बताऊ तुमकों
तेरे होने का कुछ तो अलग अहसास है
मेरी ही बन कर रह जाओं
बस अब यही प्रयास है

हर चीज तो नहीं कह सकता
बस एक बात कहना चाहूँगा
सातों जन्म का तो नहीं पता
पर इस जन्म तुम्हारा ही रहना चाहूँगा

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जो तानाशाही की तंज न सहे
ये वो संघर्ष की आवाज है,
जो हर जुल्म के खिलाफ खड़ा रहे
ये वो अधिवक्ता समाज है,

गुलामी की बेडियों में कभी न बधने वाला,
ये सच्चाई का सम्राज्य है
किसी के सामने न झुकने वाला,
ये वो अधिवक्ता समाज है

कोई आंक न सके जिसकी ऊचाई को,
ये उड़ सकने वाला वो बाज है
जो लड़ सके हर अन्याय के विरूद्ध,
जिस पर पूरी दुनिया को बस नाज है

सत्य की लड़ाई में गिर रही उम्मीद की तस्वीरों को
जो उठा रहा आज है
वो कोई और नहीं...
काले कोट में चमक रहा हमारा अधिवक्ता समाज है

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मतलबी सी इस दुनिया में
हम बेमतलब के गुनाह बने
भीड़ में खड़ा हर शख्स,
अपना नहीं होता है
हर शख्स लिये खंजर यहाँ,
बस इंतजार कर रहा होता है
कंधा तुम्हारा, तो बंदूक किसी और की होगी
घायल कोई तो होगा, लेकिन पीड़ा तुम्हे भी होगी
तेरी नासमझी का,
हर कोई उठाता फायदा यहाँ
पर समझ सके तु उसकों,
तुझे इतनी भी समझ है कहाँ
छल कपट की इस दुनिया में
बस तुझे ज्ञान की समझ है
मतलब की इस दुनिया में
हे जिंदगी तु कितनी नासमझ है !

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सफलता के परचम लहरानें का,बस सही प्रयास है
सवालों की इस दुनिया में, उलझनों का वास है
अब जीवन में उल्लास भरूँ, बस यही आस है
सदियों के बाद, आज मन फिर बहुत उदास है


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