बात अगर सुकूँ की करें तो
आपकी आवाज़ ही काफ़ी है
❣️❣️-
जब ढलते सूरज की लालिमा
खिड़कियों से छनकर
उसके यौवन को छूते हैं
तब वो बेबाक सी भागती
दरवाजे को निहारती है
पूछती हैं उस लालिमा से,
पूछती हैं घिरते अंधेरों से,
पूछती हैं घरौंदों को लौटते उन पक्षियों से
घटाओं से, फिज़ाओ से
और सनसनाती उन हवाओं से कि
परदेशी तुम कब आओगे ?...
"बाट निहारत नैन थके
बीते पहर दो पहर
चटकत चांदनी आ जइयो पिया
फूटें न फिर से भोर किरन "
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वो रात हमारी थी
वो सफर हमारा था
वो पल, वो एहसास
वो सबकुछ हमारा था
वो चुम्बन, वो चेहरें की चमक
वो नया नाम हमारा था
वो राज़, वो ख्वाब, वो ख्वाहिश
वो कहने का अंदाज़ हमारा था
दिल्ली से प्रयागराज तक साथ रहे हम
फिर भी हममें दूरी रही...
वो हसीन पल याद आते है
चले आओ की दिल भरता नही
वो सबकुछ हमारा था, हमारा है
अब तुम भी बन जाओं ना..….
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खिड़की के आकार जितना
क्योंकि हम खिड़की से उतनी
ही बाहरी दुनियां देख पाते है
जितना उसका आकार है...
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लिखूं मै कोई कविता ये उनकी फ़रमाइश है।
उनके प्रेम को शब्दों मे पिरों दूँ ये मेरी ख़्वाहिश है।
मगर शब्द मै लाऊं भी कहाँ से ?
मेरे ख़यालो का मक़ाम भी तो उन्ही का है...
लिखूँ मै तपती धूप या दोनो तरफ लगी आग को?
बरखा-बादल,शीतल हवा या विरह मे डसते नाग को?
लिखूँ मै उस मिलन को, जिसमें बगावत भी है
और अपनों का साथ भी...
लिखूँ मै उन मन्नतों को जो हमने एकदूसरे के लिए की
या एक अथाह प्रेम को किसी कविता का रूप दूँ...
निःशब्द हूँ मै क्यूंकि,
ये मेरे प्रेम के लिहाज़ के तौहीन होगा।
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लोग मरते होंगे सूरत पर...
पतिदेव जी हमे तो आपकी आवाज़
से भी बेइंतहा मोहब्बत है।-
अगर मुझे तुम्हें कुछ देना होता
तो शायद मै वो नजर देती
जिससे तुम देख पाते खुद को
तब तुम्हें पता चलता की
मेरी नजर मे तुम क्या हो
तुम इतने खास क्यूँ हो
इतने क़ीमती क्यूं हो
शायद तुम्हें देने के लिए
सबसे महंगा और क़ीमती
तोहफा यही हो सकता है
कि मै अपनी नजर
या अपना नजरिया दे सकूँ
तब तुम्हें ये एहसास हो
की तुम कितने खास हो है ना..-
उसका साथ कभी न छोड़ना...
जिसने तुम्हे अपना
साथ, समय और समर्पण भेंट दिया हो।-
महज़ वो एक ईशारा था,
एक चाय की प्याली का...
दिल तो उसी दिन हार बैठे थे,
जब इत्तेफ़ाक से नजरें उनपर पड़ी थी...-