तुम अंग्रेज़ी की खटर-पटर
मैं हिंदी उबड़-खाबड़ हूँ
तुम कोमलता की उपमा हो
मैं झुंझलाहट का झापड़ हूँ
तुम गगन चूमती इमारत
मैं घर हूँ जर्जर हालत का
तुम नौकरी हो सरकारी
मैं रोज़गार हूँ भारत का
मैं अनुभवहीन अनाड़ी हूँ
और तुम पर्याय कुशलता का
मैं वंशवाद सिनेमा में
तुम अधिकार हो जनता का
कैकई का वरदान हो तुम
मैं दशरथ की लाचारी हूँ
तुम हो इलाज कोरोना का
मैं सस्ती सी बीमारी हूँ-
हर बात पर बस तुम्हें सोचना
हमारी ये आदत है की जाती नही
हम कैसे बना लें नया हमसफ़र
हमको बातें बनानी भी आती नही
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मेरी इस हालत पर कोई
नया सा गीत बुन रही हो तुम
उसे मैं भी गा रहा हूँ ऐसे मानो
मेरे पास खड़ी सुन रही हो तुम-
उसकी हथेलियों में सूरज, आँचल आसमान है
एक विधवा है जिसकी चूड़ीयों की दुकान है।-
मुझसे बिछ्ड़ने का ख्याल आ गया है तो
आकर के मेरे पास मुझसे कह भी सकते हो
झूठी तस्सली छोड़कर के, मुझको न देना
कल मेरे बिना जी रहे थे जी भी सकते हो
माना है ज़हर ज़िंदगी, क्या झट से पी लोगे
तुम घूँट-घूँट करके ज़हर पी भी सकते हो
ले आए हम रेशम, मगर टुकड़ों मे पड़ा है,
अपनी मुहब्बत से इसे तुम सी भी सकते हो-
तेरे दामन में जो चाँद सितारे हैं
मैने ही फ़लक से उतारे हैं
तेरी मुस्कान कितनी सुन्दर है
मेरे ये ज़ख्म कितने प्यारे हैं
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लिखी शायरी भी
गीत भी हैं गाए
तुम्हें भूलें कैसे
है कोई उपाय?
अब तुम ही बताओ
या लौट आओ,
भूले हैं भटके हैं
रस्ता दिखाओ
यूँ हीं सब सहने का
ये कैसा है न्याय?
...
तुम्हें भूलें कैसे, है कोई उपाय-
तुमने भी तो रिश्ता बना लिया था मुझसे
तुम भी तो माँ को, माँ कहा करती थी-