Sudhanshu Dubey   (सुधाँशु दूबे)
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Student ● who loves to write!
Joined 17 September 2018


Student ● who loves to write!
Joined 17 September 2018
1 NOV 2020 AT 11:23

मुझसे बिछ्ड़ने का ख्याल आ गया है तो
आकर के मेरे पास मुझसे कह भी सकते हो

झूठी तस्सली छोड़कर के, मुझको न देना
कल मेरे बिना जी रहे थे जी भी सकते हो

माना है ज़हर ज़िंदगी, क्या झट से पी लोगे
तुम घूँट-घूँट करके ज़हर पी भी सकते हो

ले आए हम रेशम, मगर टुकड़ों मे पड़ा है,
अपनी मुहब्बत से इसे तुम सी भी सकते हो

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9 OCT 2020 AT 7:00

ज़रा सी देर को थककर कहीं बैठा हुआ था मैं
वापस ज़माने भर से लड़ने लौट आया हूँ
है क़िस्सा खत्म हो चुका मेरा ये सोचने वालो
कहानी में नया सा मोड़ लाने लौट आया हूँ

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11 SEP 2020 AT 13:03

तुम अंग्रेज़ी की खटर-पटर
मैं हिंदी उबड़-खाबड़ हूँ
तुम कोमलता की उपमा हो
मैं झुंझलाहट का झापड़ हूँ
तुम गगन चूमती इमारत
मैं घर हूँ जर्जर हालत का
तुम नौकरी हो सरकारी
मैं रोज़गार हूँ भारत का
मैं अनुभवहीन अनाड़ी हूँ
और तुम पर्याय कुशलता का
मैं वंशवाद सिनेमा में
तुम अधिकार हो जनता का
कैकई का वरदान हो तुम
मैं दशरथ की लाचारी हूँ
तुम हो इलाज कोरोना का
मैं सस्ती सी बीमारी हूँ

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4 SEP 2020 AT 11:04

हर बात पर बस तुम्हें सोचना
हमारी ये आदत है की जाती नही
हम कैसे बना लें नया हमसफ़र
हमको बातें बनानी भी आती नही

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31 AUG 2020 AT 20:57

तेरे दामन में जो चाँद सितारे हैं
मैने ही फ़लक से उतारे हैं

तेरी मुस्कान कितनी सुन्दर है
मेरे ये ज़ख्म कितने प्यारे हैं

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29 AUG 2020 AT 21:29

लिखी शायरी भी
गीत भी हैं गाए
तुम्हें भूलें कैसे
है कोई उपाय?

अब तुम ही बताओ
या लौट आओ,
भूले हैं भटके हैं
रस्ता दिखाओ

यूँ हीं सब सहने का
ये कैसा है न्याय?
...
तुम्हें भूलें कैसे, है कोई उपाय

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22 AUG 2020 AT 13:51

तुम, तो कभी तुम्हारी सूरत है
ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है

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18 AUG 2020 AT 22:15

तुमने भी तो रिश्ता बना लिया था मुझसे
तुम भी तो माँ को, माँ कहा करती थी

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17 AUG 2020 AT 23:38

मैं भूलता जा रहा हूँ सब
तुम इतनी याद आ रही हो

मेरी क़िस्मत मे सितारें तो हैं
फिर क्यूँ छोड़ जा रही हो?

लौट आओ, कुछ नही बिगड़ा
यूँ शेर क्यूँ लिखवा रही हो?

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16 AUG 2020 AT 20:10

एक बीज प्रेम का बोना है
पाकर जिसको सब खोना है
तुम्हें छोड़कर हमको अब
किसी और का भी तो होना है

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