मैं दिल की बात कहता हूॅं, तुम्हीं से प्रेम करता हूॅं।
तुम्हारे बिन तड़पता हूॅं, तुम्हारे संग महकता हूॅं।।
तुम्हारी मुस्कुराहट से, हृदय मदमस्त होता है।
तुम्हें देखे बिना ये दिल, बड़ा बेचैन रहता है।।
तुम्हारे नयनों को देखूं, मुझे जीना तब आता है।
तुम हो ज्योति की भांति, प्रकाशित मन ये होता है।।
तुम्हारी निश्छल सी वाणी, मधुरता से जब गुजरती है।
कोयल की वो शब्द-ध्वनि, बड़ी नीरस सी लगती है।।
कहूॅंगा मैं अब सिर्फ़ इतना, तुम्हीं पे दिल ये लगता है।
तुम्हीं से जग मेरा बढ़ता, तुम्हीं से जग ये जीता है।।
४
-सुधांशु "नि:शब्द"
-