बिछड़ रहे कुछ पुष्प इस उद्यान से
कई सहपुष्पों लघुपुष्पों से अपने
कर्त्तव्य कार्य इस उत्तम जीवन के
जान आगे बढ़ साध रहे निडर से ।।
समय के इस अद्भुत अन्तराल में
मिला जो साथ सघन उपवन में
हर्ष और उल्लास ग्रथित पवन से
हर-रोज़ प्रस्फुटित हुए मन मन से ।।
दुपहरी भरी कभी ऊष्म वरण में
छांव कभी नीर अभिपूर्ण मेघ के
इधर-उधर चले संग दोलते-डोलते
प्रकटित समय सुख प्रस्तुत करते ।।
विलग के क्षण दुःख भरते हुए
व्यथित हृदय दल विस्तृत करते
जीवन की समग्र स्मृतियाॅं संजोए
दृष्टि है केवल एक कर्तव्य ध्येय में ।।
४-
बिन कहे ये दिल मानता नहीं
तुमको ही ढूंढता बस ये कहीं
कुछ दर्द बयां करने से ही
शायद कुछ बात बने सही ।।
इस ख़्वाब में मन ऐसे ही
कलम ले सोचे, सोचे तुम्हें ही
कुछ ख़ास हो तुम मेरे लिए ही
जो लिखता सिर्फ तुमपे ही ।।
४-
कब तक गुमनाम रखोगे बेइंतहा इश्क़ को
आज या कल अश्कों में दिखेगा ही वो ।।
४-
हृदये तवमूर्तिर्मे स्वप्नेऽपि त्वं सदास्ति मे ।
बहुपर्यन्तकालवॅ्वायद्यैवकथयामि च ।।
सत्यञ्च सा त्वमेवास्ति त्वमेव माम्प्रियस्सदा।
त्वमेव हृदयन्तन्मे प्राणा: मे येन वर्धिता: ।।
तवसौन्दर्यरूपत्वाद् सुधांश्वप्यल्पताङ्गत: ।
परञ्च ते सकाशाद्धि ज्ञेयो धूमिलधारक:।।
अधुना नावगच्छामि प्रतीक्षेयम्भविष्यति।
कियती वद हे रामे तुभ्यमेवास्ति मन्मन: ।।
४
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कुछ नहीं बस ऐसे ही, मुस्कुराता जा रहा हूॅं।
कुछ नहीं बस ऐसे ही, दिल से दिल मिलाता जा रहा हूॅं।
कुछ नहीं बस ऐसे ही, प्रेम की गहराई में खोता जा हूॅं।
कुछ नहीं बस ऐसे ही, सर्द मौसम का लुत्फ़ उठाता जा रहा हूॅं।
कुछ नहीं बस ऐसे ही, चाय की चुस्की लेता जा रहा जा रहा हूॅं ।
कुछ नहीं बस ऐसे ही, भावों को जुबानी तक लाता जा रहा हूॅं ।
कुछ नहीं बस ऐसे ही, जिन्दगी को बिताता जा रहा हूॅं।।-
शिक्षण अभ्यास की मधुर मस्तियां
एक दूसरे का वो चिड़ना - चिड़ाना
साथ मिलकर टपरी पर चाय पीना
ज़िन्दगी के हंसी पलों में याद रहेगा।।
कुछ महादेव की हमेशा डांट खाना
फिर मिलकर एक दूसरे को हंसाना
साथ बैठकर लंच का वो स्वाद लेना
जीवन के प्रति-क्षण में स्मरण रहेगा ।।
वो पढ़ना-पढा़ना, साथ चार्ट बनाना
साहस जगा पाठयोजना को संजोना
साथ में स्कूल से हंसते हुए ही सदा
लौटना वो रूम को हमेशा ध्यान रहेगा ।।
यह मर्त्य का एक सुन्दर वक्त सदा
तस्वीरों में प्रतिबिम्बित जीता रहेगा
खट्टे-मीठे पलों को साथ ले हमेशा
स्मृति में जागृत नित नूतन ही रहेगा।।
- सुधांशु "नि:शब्द"
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काश ज़िन्दगी मेरी दर्पण की कहती
सब कुछ साफ और सत्य दिखता
जीवन के वो सुगबुगाए लम्हें दिखते
जो केवल मन से मन तक बहते ।।-
कह नहीं सकता,
बिन कहे समझ लो
शब्दों को त्याग,
भावों को ग्रहण कर लो।।
४
-सुधांशु "नि:शब्द"
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एक दिल था मेरा जो मेरा ना हुआ
दिल लगाने से पहले ही टूट गया।
ऐसे टूटा ये दिल जो जुड़ेगा कभी ना
दोष ख़ुद मैं ही हूँ जब किसे दोष देता।।
सपने थे कई संजोए वो सपने रहे
अपना माना था जिनको वो अपने गए।
गीत मैंने बुने थे कई सिर्फ़ उन्हीं पे
बिन सुनाए वो होंगे दफ़न ही कबर में।।
शब्द ऐसा गढ़ा जो मुझे ढाह गया
सारी उम्मीद को वो बहा ले गया।
गलती मेरी रही जो मैं कह ना सका
प्यार कितना था दिल में जो रह ही गया।।
प्रार्थना सिर्फ इतनी तुम्हें भूल जाऊॅं
तुम्हें भुलाना है नामुमकिन ये जानता हूॅं।
भूल जाऊॅं तुम्हें ही या खुद को भुलाऊॅं
किन्तु भूलना तुमको ज़रूरी मैं समझूँ ।।
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-सुधांशु "नि:शब्द"
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मैं दिल की बात कहता हूॅं, तुम्हीं से प्रेम करता हूॅं।
तुम्हारे बिन तड़पता हूॅं, तुम्हारे संग महकता हूॅं।।
तुम्हारी मुस्कुराहट से, हृदय मदमस्त होता है।
तुम्हें देखे बिना ये दिल, बड़ा बेचैन रहता है।।
तुम्हारे नयनों को देखूं, मुझे जीना तब आता है।
तुम हो ज्योति की भांति, प्रकाशित मन ये होता है।।
तुम्हारी निश्छल सी वाणी, मधुरता से जब गुजरती है।
कोयल की वो शब्द-ध्वनि, बड़ी नीरस सी लगती है।।
कहूॅंगा मैं अब सिर्फ़ इतना, तुम्हीं पे दिल ये लगता है।
तुम्हीं से जग मेरा बढ़ता, तुम्हीं से जग ये जीता है।।
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-सुधांशु "नि:शब्द"
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