देहरी पे खड़ा आंगन कि, मैं सुनता हूं झंकार तेरे झांझरो की ,जिन्हें पहनकर जैसे कोई आंगन में शोर मचाता फिर रहा हो!
और बुदबुदाहट से तेरे होंठो कि जैसे कोई राग सुना रहा हो,..इस सूने से घरौंदे में मन के; जिसे सुनने को ना जाने कब से मेरा मन व्याकुल था।
मैं मुग्ध था ही इस कौतूहल में कहीं!! की सहसा कोई आवाज उठी जो मेरा नाम पुकार रही थी ।
"एक टीस उठी घबराहट की मेरे हृदय में" और दौड़ता हुआ मैं निकल आया बाहर आंगन कि उस देहरी से उस शोर की तलाश में..!
लेकिन जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो मैं पाता हूं कि जैसे यह तुम थी ही नहीं वरन् यह कोई प्रेमिका पर लिखी नज़्म नहीं थी यह तो सिर्फ कल्पना थी मेरे अंतर्मन कि जिसमें मैं अपने अतीत के कुछ सुनहरे क्षणों को महसूस कर खुश हो रहा था और कोशिश कर रहा था ,कि कैसे भी कर के उन यादों को लौटा पाऊं जिनमें खो गया है "मेरा बचपन और वो किस्से मेरे बचपने के!!
- सुधांशु (The_Bright_Moon)🌙
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घोर अमावस में मैं जन्मा
तू पूनम की रैन में आई,
मैं गोकुल का वन हूं राधा
तू बरसाने की अमराई !
चमक उठु मैं खिल जाउ
तू मंतर जो मुझपे फेरे,
मुझमें मेरा क्या है सजनी
मन मुरली दोनो तेरे !!
पोर पोर में प्रीत जगा दे
रोम रोम अमृत भर दे ,
रास रचा के राधा रानी
इस ग्वाले को कान्हा करदे!-
"अधर प्रेम कि गागरिया
नैन अश्रु दिए छलकाय,
राग वियोगन जब छिड़ा
तब व्याकुल मन बलखाय!
सांझ कटे ,दिन रैन कटे
नैयन के सुख चैन कटे,
वो सघन आस में प्रेम की
चित चंचल रहे लगाय!
ऋतुराज़ कटा,शिवमास कटा
लख माह दिए बिताय,
बैरन लौट कर आया ना
बिछोडा़ दिए सहाय!!-
सांवरा सा प्रेम था
वो बावरी सी देह थी,
वो छलिया था जो छल गया
तेरा प्रेम अधूरा रह गया!
प्रेमिका का राग था
अर्धांगनी का खाब था,
रह गयी जो चाह थी
तेरी "मृगतृष्णा" बन गयी!
वो बचपना कि यकीन था
जो सब्र करता रह गया,
छिन गया तेरा चैन था
तेरे नैन व्याकुल थक गए!
-सुधांशु (the_Bright_m0on)
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ऐ ज़िन्दगी हवाले तेरे ,
कुछ ख़ाब लेकर आया हूँ!
कंही शाम खो कर आया हूं
कंही रात गनवां कर आया हूँ!
के वक़्त कि इस दौड़ में
कुछ लम्हें सिमट कर रह गए,
कुछ मिट गए जो निशान थे
कुछ याद बन कर रह गए!
इन मन्ज़िलों कि चाह में
कुछ "राज़ " पुराने बिछड़ गए,
एक करवां है हम दोस्तों का
जो "अजीत" बन कर रह गए!-
झर झर बरसे बदरा जो
वो आँसू सुर्ख रुलावेगा,
तू बिछड़न कि सौगात ना दे
मन बैरी खूब सतावेगा!
तू झांझर अपने चालों कि
जो आँगन में थिरकावेगा,
मन कैदी है तेरी चालों का
तेरी चाल चलन लग जावेगा!
तू मंद मंद तेरी साँसो कि
जो सुर में गाता जावेगा,
मन बावला है तेरे गीतों का
तेरे राग रटन लग जावेगा!
मन बावला है तेरे गीतों का
तेरे राग रटन लग जावेगा
-"सुधांशु (the_bright_moon)🌕"-
छू कर तेरे कदमों को वो दरिया भी मदहोश हो गया,
महबूब तेरी चाल पर मैंने बूंदों को थिरकते देखा है!
-"सुधांशु (the_bright_moon)🌙"
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ये प्रीत है कोई रीत है,
या सौंधे मन संगीत है!
कोई छंद मेरे छीन कर,
मोहे अपनी धुन में रच रहा!
कोई साज़ मेरे छेड़ कर,
या लिबाज़ मेरा ओढ़ कर!
जो मैं सुन रहा कुछ और है,
या वो नाम मेरा ले रहा!
ये बैर है,बैराग है,
या बावरा कोई राग है!
कोई रंग मेरा छीन कर,
मोहे अपने रंग में रंग रहा!
ये चूडियों कि झंकार है,
या पायलों कि छंकार है!
जो थिरक रहे मेरे पाँव हैं,
या कोई चाल अपनी चल रहा!
-सुधांशु (the_bright_moon)🌙-
वो आसमां भी गरज़ गया
वो बारिशें भी बरस गयी,
ना फिक्र हुई सवेर कि
रात आहटों में गुज़र गयी!
वो बारिशों कि बौछार थी
या तेरी चूडियों कि छन्कार थी,
वो गरज़ रहा आसमान था
या तेरी पायलों कि झंकार थी!
वो रंज था कोई घटाओं का
या तेरी जुल्फों में कोई उलझ गया,
जो मैं ठहर गया मेरा सब्र था
या तेरे केशुवों का कोई ज़ाल था!
वो राग था हवाओं का
या तेरे श्रृंगार का कोई साज़ था,
जो मैं बहक गया मेरा फ़रेब था
या तेरे रूप का कोई कसूर था!
-"सुधांशु✒(the bright moon)"
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मैं दाग नहीं
मैं बेदाग़ हूँ,
मैं इश्क़ सफेदा
मैं चाँद हूँ!
मैं ख़्वाब हूँ
मैं इक याद हूँ,
मैं बेपाक़ मुहोब्बत
इक फ़रियाद हूँ!
मैं सब्र हूँ
मैं शुकून हूँ,
मैं सौंधे मन का
सबूर हूँ!
तू इश्क़ लिखे तो
मेरा नाम लिख,
मैं इश्क़-ए-निशां
मैं चाँद हूँ!...
- "सुधांशु🖋️(the_bright_moon)
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