Sudha Pandla   (Sudha pandla(rohilla))
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Joined 23 August 2023


Joined 23 August 2023
YESTERDAY AT 16:15

जन्म से लेकर अन्त समय तक,
जीवन के विभिन्न चरणों में ,
हमारे अनेक मित्र बनते है,
इस दौरान हम शिक्षा भी ग्रहण करते है,
और रोजगार भी पाते है ,
गृहस्थ जीवन भी जीते है,
परन्तु इसमें अन्त तक वही मित्र हमारे साथ होता है, जो हमें समझता है ,
जो हमारी भावनाओं की कद्र करता है ,
हमारे साथ खङा रहकर हमारी ताकत बनता है कमजोरी नहीं,
और जब जरूरत हो तब हमेशा तैयार रहता हो,
भले ही कितना भी जरूरी कार्य हो उसके पास,
हमारी बकवास भी बङे ध्यान से सुनता हो,
साथ ही मुस्कुरा भी लेता हो,
कि इसे बुरा ना लग जाए ,
और हमें सुकून भी उसी के साथ मिलता है,
शेष भीङ तो अपने आप पीछे छटती जाती है ,
बाकि सबकी अपनी-अपनी समझ।
सबके अपने-अपने मत है।।
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SUDHA PANDLA(ROHILLA)

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30 APR AT 14:17

तो जाते-जाते मैनें उससे पुछा कि ,
क्या हम कभी-कभी बात नहीं कर सकते?
तो उसने कहा कि-
हमारा बात नहीं करना
अब जरुरी है,
तेरा मुझसे और मेरा तुझसे
दूर रहना अब जरुरी है,
तेरा तेरी दुनिया में
वापस चले जाना
अब जरुरी है,
मुझे मेरी नई दुनिया बनाना
अब जरुरी है,
जैसा मै तुझे अपनी जिन्दगी में चाहता हूँ
वैसा तू नहीं है इसलिए अब तू जा,
मै यही रहूंगा ,
और फिर शायद
सब सही रहेगा,
क्यों जो कुछ बीत चुका है उसे अब जबरदस्ती चलाना है,
हमारा इश्क एक फूल था
उसको अब मुरझाना है,
और सच कहूँ तो
मुझसे बात करती रहेगी तो हर शख्स में मुझे ढूंढेगी,
तु मेरी ना होकर भी हर वक्त मेरी रहेगी
मेरी बातो में तेरी आरजू और तेरी आंखो में मेरी जूस्तजू हमेशा रहेगी,
तू बात करती रही तो हमेशा मेरी रहेगी
इसलिए अब तू जा। ।।।

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30 APR AT 11:42

हे मनु!
जीवन एक मझधार है,
इसमें अथाह परीक्षाओं की भरमार है
प्रभंजन किस ओर दिशा बदलेंगी,
तरणी किस ओर रूख करेगी,
पथ कौनसा तय होगा,आह्लाद कितना प्राप्त होगा ,
हिरण्यम् कितना प्राप्त करेंगे,अपत्य में क्या प्राप्त करेंगे,
औरस कहाँ तक साथ निभाऐंगे,द्रव्य कितना संचित करेंगे,
मेरा अंश कितना होगा,कम होगा कि ज्यादा होगा,
कैसे-कैसे और क्या -क्या होगा,ये होगा कि वो होगा,
मेरे अपने कितने होंगें,
फायदा उठाएंगे या फायदा पहुचाऐंगें,
सवयस कैसे होंगें,स्वार्थी होंगे या सुरम्य होंगें,
कुटुम्ब कैसा है,स्नेहाचारी है या स्वेच्छाचारी है,
खाविंद कैसा होगा,सरल स्वभाव का होगा या कटु स्वभाव होगा
आहार सुपोषित एवं सुपाच्य होगा ,या कुपोषित एवं अपाच्य होगा,
आलय कैसा होगा,छोटा होगा कि बङा होगा,
आमदनी बैठे-बैठे कैसे आएगी,
खतरे उठाने से आएगी कि कङी मेहनत से आएगी,
कम समय में ज्यादा आमदनी कैसे होगी,
विलासितापूर्ण जीवन की आवश्यकता बिना कमाये कैसे पूर्ण होगी।।
फलाँ फलाँ फलाँ ...................................
कैसे हो हमारा भला................................
इतने व्यवधान जो पाल रखे है जीवन में।
जगह-जगह अटके हुए है कठिन राहों में।।

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28 APR AT 22:45

यूँ ही रज्ब बेहतरीन नहीं बनती ,
यूँ ही कर्दिश सफर तक नहीं जाती,
यूँ ही लक्ष्य लक्ष्यित नहीं होता,
यूँ ही उष्णता-शीतोष्णता नहीं आती,
यूँ ही अमेजन हरा नही होता,
यूँ ही होमोसेपिएन्स से मानव नहीं बनता,
यूँ ही कश्मीर में ट्यूलिप नहीं खिलते,
यूँ ही कठिया गेहूँ को जीआई टैग नहीं मिलता,
यूँ ही अग्नि प्राइम सफल नहीं होता,
यूँ ही राष्ट्र की प्रथम घरेलू जीन थैरेपी नही बनती,
कुछ तो बात है हरियाली में,
कुछ तो बात है वर्षा वनों में,
कुछ तो बात है रज्ब की इत्कतदारी में,
कुछ तो बात है राष्ट्र के अक्षपटलिकों में,
कुछ तो बात है राज्य के सीताध्यक्षों में ,
कुछ तो बात है समस्थाध्यक्षों में,
पौतवा और अकरा अध्यक्ष कहाँ पीछे रहने वाले थे,
नवध्यक्षा ,लिपिकरस भी इसी पंक्ति मे विराजमान थे,
महामात्यसर्पों की तो बात ही निराली है,प्रादेशिक को प्रधानी भी तो चलाळी है,
पण शैलो फेक,डीपफेक का जमाना है,राष्ट को गैर-कानूनी विपदा से बचाना है,
हिम पर भारती का पुष्प फिर खिल गया है,बर्फीलें डाकिऐ का रास्ता खुल गया है,
नवचेतना आयी है,लोकतंत्र में भागीदारी निभायी है,
एक्ट ईस्ट पर जोर है,राष्ट्र के मजबूत कदम इस और है,
बढे चलो-बढे चलो,
एकला नहीं समूह में चलो,
समूह में नहीं तो एकला चलो,पर चलो-चलो,चलो-चलो।

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23 APR AT 16:48

यूँ नींद मुझे आती है।
यूँ आलस्य सा समाँ है।
यूँ झपकी ने रफ्तार बढायी है।
यूँ निंदिया भी लहरायी है ।।
बसंती सा मौसम है।
कभी बादल तो कभी धूप सा मिजाज है।।
नयी कोपलें आ गयी है वृक्षों के,
जम के भा गयी है मन को,
पश्चिमी विक्षोभ गङगङाता आ गया है,
बस अब तो बंगाल की खाङी की शाखा का इंतजार है,
धीमी-धीमी बूंदों वाली बारिश की बाट जोह रहे है।
चिलचिलाती धूप गेहूँ की फसल भी काटी जा रही है।।
सोचा शीतल जल ग्रहण किया जाएं ।
नींद को उङा लिया जाएं ।।
चाय पीकर कुछ ऊर्जा ले।
ज्यादा नही बस थोङा-थोङा लें।।
यूँ रमझोळ में जीवन गुजरता रहेगा।
कारवां बनता रहेगा।
अंदाज बदलते रहेंगे।
आप और हम यूँ ही हँसते-हसाते रहेंगे। ।
🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🌿🌿☘🙂🙂

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18 APR AT 22:32

आज बोट (🛶🛶⛵⛵⛵⛵⛵⛵⛵🛳🛳)कुण-कुण गेरबा ज्यासी?????

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18 APR AT 17:13

Target goal target........

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15 APR AT 17:02

जीवन की व्यथा ऐसी है कि
कुछ समझ ही नही आ रही ।
समाज का जंजाल ऐसा है कि ,
घेरे ही जा रहा है।।
सिर्फ दो ही रास्ते सूझ रहे है ।
या तो संसार छोङ दो,
या जंजाल में फंसकर उम्रभर मर-मरकर जिओ।।
कोई समझ क्यों नहीं रहा कि ,बचपन छोङ,
सारा जीवन मैने अपने बारे कभी नही सोचा ।
अब मुझे अपने बारे में भी सोचने दो।।
जीने दो मुझे।
मै खुलकर जीना चाहती हूँ ।।
मुझे बांधने की कोशिश मत करो ।
उङना चाहती हूँ।।
कुछ कर दिखाना चाहती हूँ।
कोई तो हो जो समझे मुझें।।
सब स्वार्थी है।
जग सत्यता है कि मनुष्य दूसरों मे अपनापन ढूंढते है।।
पहले खुद तो किसी के अपने होकर देखों,जीवनसाथी का खेल जिए को खाए जा रहा है।
जन्मदाता-पालनकर्ता की व्यथा रह-रहकर अन्दर ही अन्दर मारे जा रही है,कछुए की चाल हो इसकी ।
तो संसार में जीवन में रेग-रेंगकर चलना पङेगा ।।
संवृद्धि कुछ दिख नहीं रही।
कैसे जीवन गति पकङेगा।।
केवल संतान उत्पत्ति के लिए ?
केवल स्वार्थी समाज के लिए ,एक बार अग्नि में तो झोंकना नहीं है??

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15 APR AT 17:00

जीवन की व्यथा ऐसी है कि
कुछ समझ ही नही आ रही ।
समाज का जंजाल ऐसा है कि ,
घेरे ही जा रहा है।।
सिर्फ दो ही रास्ते सूझ रहे है ।
या तो संसार छोङ दो,
या जंजाल में फंसकर उम्रभर मर-मरकर जिओ।।
कोई समझ क्यों नहीं रहा कि ,बचपन छोङ,
सारा जीवन मैने अपने बारे कभी नही सोचा ।
अब मुझे अपने बारे में भी सोचने दो।।
जीने दो मुझे।
मै खुलकर जीना चाहती हूँ ।।
मुझे बांधने की कोशिश मत करो ।
उङना चाहती हूँ।।
कुछ कर दिखाना चाहती हूँ।
कोई तो हो जो समझे मुझें।।
सब स्वार्थी है।
जग सत्यता है कि मनुष्य दूसरों मे अपनापन ढूंढते है।।
पहले खुद तो किसी के अपने होकर देखों,जीवनसाथी का खेल जिए को खाए जा रहा है।
जन्मदाता-पालनकर्ता की व्यथा रह-रहकर अन्दर ही अन्दर मारे जा रही है,कछुए की चाल हो इसकी ।
तो संसार में जीवन में रेग-रेंगकर चलना पङेगा ।।
संवृद्धि कुछ दिख नहीं रही।
कैसे जीवन गति पकङेगा।।
केवल संतान उत्पत्ति के लिए ?
केवल स्वार्थी समाज के लिए ,एक बार अग्नि में तो झोंकना नहीं है??

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11 APR AT 17:08

अहा!धूल भरी आंधी का आगमन ,
बादलों की तेज गङगङाहट,
आज तो मोटी बूंदों वाली बारिश,
हिन्दू चैत्र मास का शुरूआत का समय,अंग्रेज़ी का अप्रेल मध्य का माह,
व्योम तेज आकाशीय बिजली से सराबोर,
रह-रह के बादलों की तेज गर्जन ,चमकती बिजली की तीव्रता,बारिश का रूक-रूक कर आना ,
कभी तेज-कभी धीमा ,बारिश से सुहावना मौसम,
और चमचमाती बिजली आनन्द एवं भय के मध्य द्वंद्व सा उत्पन्न कर रही है ,परन्तु बारिश के बाद सौंधी-सौंधी मिट्टी की खुशबू मन को भा गयी,
जनमानस की व्यस्तता को कुछ क्षण के लिए थोङा ठहराव मिला है,
सुहावना समा ,विचलित यातायात ,तंग गलियों का दृश्य,मानों अपनी -अपनी व्यथा बयां कर रहे हो,
मनुष्य द्वारा पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाना,
कभी वनों की कटाई से,कभी वाहनों के धुएँ से,
कभी विनिर्माण गतिविधियों से,कभी खेतों को आवास भूमि में बदलकर,कभी पराली जलाकर तो कभी बहती नदियों में औद्योगिक अवशिष्ट विसर्जित करके आदि,
नई बीमारियों का जीवन में प्रवेश,जीवन के आनन्द की जगह अस्पतालों के चक्कर,
गनीमत है कि भरी बारिश में भी भवन निर्माण प्रगति पर है,मजदूर यकायक कार्य कर रहे है,
कुछ समय के लिए शीतल मौसम ,
बारिश एवं बादलों की गर्जन रह-रहकर कुछ अंतराल पर अपने आप को दोहरा रहे है,बारिश की तीव्रता कुछ कम हुई है,थोङा धूप भी आ गई है,
लोग घरों के बाहर आ गए है,पुनः अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हो गए है।

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