यूँ ही रज्ब बेहतरीन नहीं बनती ,
यूँ ही कर्दिश सफर तक नहीं जाती,
यूँ ही लक्ष्य लक्ष्यित नहीं होता,
यूँ ही उष्णता-शीतोष्णता नहीं आती,
यूँ ही अमेजन हरा नही होता,
यूँ ही होमोसेपिएन्स से मानव नहीं बनता,
यूँ ही कश्मीर में ट्यूलिप नहीं खिलते,
यूँ ही कठिया गेहूँ को जीआई टैग नहीं मिलता,
यूँ ही अग्नि प्राइम सफल नहीं होता,
यूँ ही राष्ट्र की प्रथम घरेलू जीन थैरेपी नही बनती,
कुछ तो बात है हरियाली में,
कुछ तो बात है वर्षा वनों में,
कुछ तो बात है रज्ब की इत्कतदारी में,
कुछ तो बात है राष्ट्र के अक्षपटलिकों में,
कुछ तो बात है राज्य के सीताध्यक्षों में ,
कुछ तो बात है समस्थाध्यक्षों में,
पौतवा और अकरा अध्यक्ष कहाँ पीछे रहने वाले थे,
नवध्यक्षा ,लिपिकरस भी इसी पंक्ति मे विराजमान थे,
महामात्यसर्पों की तो बात ही निराली है,प्रादेशिक को प्रधानी भी तो चलाळी है,
पण शैलो फेक,डीपफेक का जमाना है,राष्ट को गैर-कानूनी विपदा से बचाना है,
हिम पर भारती का पुष्प फिर खिल गया है,बर्फीलें डाकिऐ का रास्ता खुल गया है,
नवचेतना आयी है,लोकतंत्र में भागीदारी निभायी है,
एक्ट ईस्ट पर जोर है,राष्ट्र के मजबूत कदम इस और है,
बढे चलो-बढे चलो,
एकला नहीं समूह में चलो,
समूह में नहीं तो एकला चलो,पर चलो-चलो,चलो-चलो।
-