Sudesh Mahto   (Sudesh Mahto)
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Introvert Writer
Joined 14 June 2022


Introvert Writer
Joined 14 June 2022
23 APR AT 1:31

लगी जो आग जंगल में
वे उभर न पाए
कुछ झुलस गए, कुछ जल गए
आग बुझ गई पर उसके
अन्दर का आग बुझ न पाया

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20 APR AT 18:49

आसमानों को गले लगाया
जमी को छोड़ दिया
जिन्होंने हमें बनाया
हमने उन्ही को छोड़ दिया

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18 APR AT 19:54

बहुत जल्दी जिंदगी जी लिए यार
क्यों एकांत है पाना
बह चलो जिधर
जिंदगी को है लेजाना


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18 APR AT 19:38

भाव का बहाव बहुत तेज था
ठहराव किसी मोड में न था
उगती लालिमा से सुबह की
मुलाकात होती थी
डूबती किरण से बिछड़न होती थी

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11 APR AT 19:21

घर से निकलते ही लगता है
कुछ तो छुट रहा है
बस में बैठे याद आता है
सब कुछ तो छुट रहा है

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11 APR AT 15:20

जब हम लौटेंगे तब तक
बहुत कुछ बदल चुका होगा
लोग, इमारते और आँखें
पहले जैसा न कुछ भी

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10 APR AT 23:17

क्यों उड़ना है आसमानों मे
सफ़ेद चादर ओढ़े बादलों के उस पार
हमें जमीं पसन्द है

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7 APR AT 18:17

मेरा वर्तमान परिस्थिति गवाह है कि
कैसे हमने कीमती समय बर्बाद किया

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5 APR AT 17:22

अतीत की परछाई

जिस चौराहे मे लोग
एक दूसरे से मिलने आते थे
वहाँ आजकल लोग
एक दूसरे को छोड़ने आते हैं
बस बहुत कम समय के लिए रुकती है
और लोग वहाँ देर से ठहरना चाहते हैं
लोग झिझकते है व्यक्त करने मे
जब तक अन्तर मन की बात निकलती हैं
तब तक बस निकल जाती है
बात से ज्यादा भाव होती है
यादों की एक छाव होती है
उस ठेहराव की धूप में
उम्मीद की जाती है
मिलने का
दिन महीने साल निकल जातें हैं
किसी रेत की तरह
दुबारा कभी मिल भी जाए
तो अतित की रोशनी से
टकराते है उनसे नहीं
बारिश की बूँदें टपकती है
थोड़े वे भी भीग जाते हैं
हवा की झोंक से निकलते हैं
आसमान मे कालि बादल छा जाती हैं
Sudesh Mahto




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5 APR AT 11:30

अगर यह सच्च है
तो संशय क्यो है
अगर यह झुठ है
तो सच्च क्या है

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