मेरी उलझनों का दौर अब खत्म सा है,,साहब!
वो क्या है ना,,उलझनों ने ही अब तक उलझा रखा है।
जब से रूबरू हुई हूं खुद के सुकून से,,
ऐसा लगता है,,दिल का बोझ अब दिल ने सुलझा रखा है।।
खोने पाने से मन अब जैसे भर सा गया है,,साहब!
वो क्या है ना,,मेरे अपनो की खुशियों ने अब जगा रखा है।
टूटी नही रही अब जुड़ चुकी हूं इस कदर खुद से,,
तोड़ दो सारे ख्वाब अपने,,जो अब तक तुमने सजा रखा है।।
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