सुचि (सनाज़)   (Suchi)
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Joined 17 May 2021


Joined 17 May 2021

कभी हम मन्नत भी नहीं मांगते थे तुम्हें बिना सोचे,,,
जाने कैसे दहलीज पार कर दी थी तुमसे बिना पूछे।
तुम्हारी बाहों की गहराई जानते हुए भी,,,,साहब!
लड़खड़ाए थे मेरे कदम एक दफा तुम्हें बिना समझे।।

तुम मांगते थे दुआएं दर दर मेरी सलामती के लिए,,
फिर भी हफ्ते नहीं बीतते थे मेरा तुमसे बिना रूठे ।
मैंने ही भूल की हर बार तुम्हें समझने में,, साहब!
अब तक पूरे किए हैं सारे ख्वाब तुमने बिना समझे।।

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ये चांद बेदाग नहीं तुम्हारी जिंदगी की तरह,,
क्यूं बनाते हो मुझ सा धब्बा यूं हमें याद करके...
भूलते क्यूं नहीं हमारी सारी बातें तुम,,साहब!
क्या मिलेगा तुम्हें इस तरह खुद को बरबाद करके..!

चुभने लगी हूं जाने कब मैं अब अपनी ही नजरों में,,
क्यूं मर रहे हो तिल तिलकर मुझको आबाद करके...
क्यूं पालते हो इस तरह के अधूरे ख्वाब,, साहब!
जी लो अपनी जिंदगी मेरी याद को आजाद करके..!!

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मेरी उलझनों का दौर अब खत्म सा है,,साहब!
वो क्या है ना,,उलझनों ने ही अब तक उलझा रखा है।

जब से रूबरू हुई हूं खुद के सुकून से,,
ऐसा लगता है,,दिल का बोझ अब दिल ने सुलझा रखा है।।

खोने पाने से मन अब जैसे भर सा गया है,,साहब!
वो क्या है ना,,मेरे अपनो की खुशियों ने अब जगा रखा है।

टूटी नही रही अब जुड़ चुकी हूं इस कदर खुद से,,
तोड़ दो सारे ख्वाब अपने,,जो अब तक तुमने सजा रखा है।।

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अब भी हर रोज गुजरती हूं तुम्हारी खूबसूरत गलियों से,,
तुम्हारे आस पास लोगों की भीड़ देखकर ठहर जाती हूं।

आहिस्ता आहिस्ता ही सही अब तुम मशहूर हो गए हो,,
ये सोच मन ही मन तुम्हारी कामयाबी पर मुस्कुराती हूं ।।

हमारे बीच की बातें ना जब तुम औरों पर आजमाते हो,,
ये देखकर जाने क्यूं थोड़ी तुमसे खफा सी हो जाती हूं।

चाहूं तो समेट लूं अपने हिस्से की तमाम वो सारी यादें,,
पर मैं आदत से मजबूर खुद की मनमर्जियां चलाती हूं।।

पता है मुझे हर लम्हा गुजारते हो तुम इक इंतजार में,,
फिर भी मैं तुम पर बेपरवाह बन हसीन सितम ढाती हूं।

शायद जानती हूं कि नजदीकियां कितनी दरमियां हमारे,,
इसलिए पास होकर भी तुमसे ही अब बहुत दूर भागती हूं।।

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देर ही सही पर आखिर तुम्हें समझने वाले लोग मिल ही गए,,,
पता है खुश भी हूं और दुःखी भी अपनी जगह किसी और को देखकर...

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शाम की तरह अगर ढल जाऊं तो मुझे तुम ढलने देना,,
ये जरूरी नहीं कि तेरे जख्म का आखिरी सहारा बनूं मैं।

मैं सूखी नदी हूं फिर भी मुझे समन्दर से मिलने देना,,
ये जरूरी नहीं कि तेरी डूबती नाव का किनारा बनूं मैं।।

निकले जो दर्द यूं आंखों से तो उन्हें तुम बहने देना,,
ये जरूरी नहीं कि तेरी आंख का हसीं सितारा बनूं मैं।

मर जाएं सारी यादें तुम सब कुछ मुझे ना भूलने देना,,
दर दर भटकूं फिर भी तू याद रहे ऐसी आवारा बनूं मैं।।

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पता है इंतज़ार और यादें अक्सर बेशकीमती होते हैं,,,
सस्ता होता है तो सिर्फ एक ख़्वाब,,जो आसानी से गिरवी रखे जाते हैं..✍️

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जानते हो मेरी पायल शोर नहीं करती अब,,
खुद को बहरा बना लो तुम उदास नही होगे कभी...✍️

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अक्सर लोगों को रोकती हैं कुछ जिम्मेदारियां मोहब्बत करने से,,
इसलिए जीना ही पड़ता है उन्हें निगाहों में इक बेवफ़ा बनकर..✍️

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सदा से ही छलता रहा जमाना मोहब्बत के हसीं रंग दिखाकर,,
अपनी तो रूह भी ख़ाक हुई यहां,,,अब सबको आजमाकर।

इंसानों में तो गिनती कभी होती ही नहीं है हमारी,, साहब!
लोग सामान समझने लगते हैं हमें,,,अपना दीवाना जानकर।।

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