Suchita Pandey   (Suchita)
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Joined 11 August 2017


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Joined 11 August 2017
9 JAN 2023 AT 23:41

हाँ मैं खोई हूँ ना जाने कब से।
कौन सुनाएगा ये कहानी तुझे?
की खोई हूँ तेरे ही ख़यालों में,
आवाज़ दे कर तो देख मुझे!

किताबे पढ़ना चाहूँ, तो पढ़ूँ कैसे?
हर पन्ने पर तेरा ही चेहरा दिखे।
क़लम भी जो उठाई लिखने को कुछ,
हर शब्द में मेरी उँगलियाँ, तेरा नाम ही लिखे॥

बादल जो ग़रज़े, तो लगे तेरी आहट सी।
बारिश में भी तेरा नाम ही बरसे॥
सोचा जो बन जाऊँ मैं तेरी राधा।
मीरा बन, दिल तेरे दरस को तरसे॥

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7 MAR 2022 AT 22:27

जीवन के इन रास्तों में
कुछ रिश्ते टूटे, कुछ अपने बदले

जीवन का यह कैसा दस्तूर
ना ख़ुशी मिली, ना आंसू निकले

चलता रहेगा जीवन तो
पर क्या मिलेगा जवाब उन सवालों का

जिन सवालों का जवाब
ना हमें मिला, ना तुम ही बोले

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26 DEC 2021 AT 17:38

ना होता तू, ना होतीं ये उम्मीदें।

क्यूँकि उम्मीदें सिर्फ़ टूटती नहीं, हमें भी तोड़ देतीं हैं॥

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20 SEP 2021 AT 1:41


जब चाहा कोई थाम ले आ कर हाथ ।
इस दर्द को बाँट ले, दे कर मेरा साथ ।

इन आँखों में पढ़ ले, हर वो अल्फ़ाज़ ।
इन बहते आँसुओ में छुपा हर वो राज ।।

तब मिला क्या? सिर्फ़ तन्हाई का साया ।
इस तन्हाई ने ही मुझे मुझसे मिलाया ।

आंसुओं ने बह कर एहसास दिलाया ।
के खुद को ही छोड़ देता है खुद का साया ।।

“तू रोएगा, पर देखना कोई नहीं आएगा”
तेरा मन तुझे ये कह कर सताएगा ।

पर तुझे ही समझना होगा ये मन का इशारा,
मत बना किसी को कभी अपना सहारा ।

क्यूँकि दूसरों का सहारा कुछ पल का है, यूँ चला जाएगा,
तू खुद का सहारा बनेगा, तभी इस दर्द से उभर पाएगा ।।

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18 SEP 2021 AT 20:02

There are times when you’re at your lows,
Heart goes week, emotion grows.

You seek love, you seek some attention;
But get abandonment, there’s no redemption .

Eventually you learn to love solitude,
And master this art with fortitude.

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13 SEP 2021 AT 22:54

सब कुछ बेरंग सा लगने लगा है।
बादल भी अब तंग मुझे करने लगा है।

सवालों की बौछार सी हो रही है ।
जवाब तो मेरे पास कुछ भी नहीं है।।

घिर रही हूँ मैं किसी तो जाल में।
देखा ना था खुद को कभी ऐसे हाल में।

हर शख़्स, हर आवाज़, हर एक साज़ है अब सता रही।
कुछ तो मेरी अंतरात्मा मुझे है बतला रही।।

ना मैं समझ रही ना किसी को भी समझ आ रही।
बस यूँ ही हर रोज़ खुद को दिलासा देती जा रही।

कभी तो कोई खोलेगा मेरी इस किताब के पन्ने,
कभी तो कोई आएगा इनमे लिखे राज़ पढ़ने।

कोई तो ये पहेली सुलझा पाएगा;
या ये क़िस्सा भी अनछुआ ही रह जाएगा?

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27 AUG 2021 AT 0:04

कुछ लफ़्ज़ों का थम जाना ही सही था।
कुछ लोगों को ना आज़माना ही सही था।।

कुछ ग़लतियाँ कर जाना भी सही था।
कभी कभी रूठना मनाना भी सही था।।

जो सही था वो ग़लत की पहचान करा गया।
अपनो और खुदगर्जों में फ़र्क़ दिखा गया।।

ज़िंदगी का कुछ रंग नया दिखा गया।
खुद के दिल की बात खुद से बयाँ करा गया।।

वो सही जो था, बंद आँखे खोल गया।
लोगों के कुछ रंग़ों का सच बोल गया।।

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26 AUG 2021 AT 22:57

Some people be like,

“If you start behaving the same way I did to you, then I’m the victim not you”

Isolate yourself from such toxicity! immediately!!

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30 JUN 2021 AT 22:24

Sometimes you have to just ignore what you see and believe what you imagine

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10 JAN 2021 AT 23:47

She lost her exuberance, like a flower losing its fragrance

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