//अमृता //
इमरोज़ तो एक ही थे...
और अमृता प्रीतम भी एक हीं थीं...
साहिर भी एक ही थे...
उन जैसा हो पाना कहां संभव होगा !
ईश्वर ना करें कि किसी की ऐसी तक़दीर हो !
किसी का ता-उम्र इंतज़ार ये जानते हुए भी
कि वो कभी मिल नहीं सकते...
कितना पीड़ादायक होता होगा...
किसी के साथ रह कर भी उसे...
पल-पल मरते देखना, किसी और की याद में...
किसी की चाहत में जीवन भर लिखना और
उसके प्यार को कोई नाम ना देना...
उफ़ ! त्रिशंकु सा जीवन,
तीनों ने जिया...-
"Silent tears holds the loudest pain."
Books : यहीं कहीं, धूप - छाँव 🍁, अल्पविराम