कुछ मैंने कहा, कुछ उसने सुना
और फिर कहासुनी हो गई।-
जो वक़्त का नहीं उसे उस वक़्त पे बचा ले,
जो वक़्त का हो उसे उस वक़्त पे लुटा दे,
फ़िर होगा न इंतज़ार तेरा यूं कभी,
गर ऐतराज़ हो तुझे, तू उस वक़्त पे बता दे..
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ये नहीं, वो नहीं
ऐसे नहीं, वैसे नहीं
यहां नहीं, वहां नहींं
तब नहीं, अब नहीं
"हम नहीं, तुम नहीं
हां यही , हां यही।"-
आओ झूठ बोलें,
कुछ तुम बोलो,
कुछ हम बोलें
आओ झूठ बोलें
"खुश हो ना ..?"तुम बोलो
"हां", हम बोलें
आओ झूठ बोलें
"ख़्याल रखना", तुम बोलो
फिर "हां" हम बोलें
आओ झूठ बोलें
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यहीं ठहर जाऊं..?
या सब छोड़ के यूं ही चले जाऊं..?
अब मेरा घर तो रहा नहीं,
तुम्हारा पता कुछ ठीक से याद नहीं
जाऊं तो कहां जाऊं..?
एक ही रस्ता बचा है ,
बोलो तो यहीं ठहर जाऊं..?-
ये भी देखा ,वो भी देखा
गर कोई पूछे तो कहना...
यार मैंने तो कुछ भी नहीं देखा।
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कुछ किस्से हैं, कुछ यादें हैं
ख़ामोशी के धागों से मैंने बांधे हैं
कभी खुले गुलिस्तां तो नज़र भर देखना
इस दिल के टुकड़े किस तरह मैंने बांटे हैं-