तेरी मेरी कहानी को लोग आज भी शौक से सुनते हैं,
मैं सुनाती हूँ और तुमको कुछ ज्यादा ही खूबसूरत बताती हूँ।
मैं उनको बताती हूँ कि हम क्या थे,
क्या हो सकते थे, ये नहीं बताती।
मैं उनको हमारे सपने बताती हूँ,
वो सच क्यों नहीं हुए, ये नहीं बताती।
तुमको लिखे हुए ख़त पढ़ के सुनातीहूँ,
वो भेजे क्यों नहीं, ये नहीं बताती।
मैं उनको बताती हूँ की मैं तुमको चाँद कहती था,
ये अमावस क्यों है, ये नहीं बताती।
वो ढूंढते हैं तुम्हें मेरे आस-पास,
मेरी स्याही और कामराज के बीच क़ैद हो तुम, ये नहीं बताती।
बादलों में जब कुछ अनबन होती है,
और आसमान की आँखें कुछ नम होती हैं,
तब जब नाचते-गाते लोगों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता,
तब उनको बताती हूँ की मुझे बारिश नहीं पसंद,
तुम्हारा बारिश को नापसंद करना इसकी वजह है, ये नहीं बताती।
तुम्हारे जाने के बाद, ख़ुदा से नाता तोड़ सा ली,
उनको लगता है नाराज़गी है क्योंकि इश्क़ था, मुकम्मल नहीं हुआ,
इबादत थी, ये नहीं बताती।
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