कैसे लिखूं अपने बारे मे सब कुछ भूलकर तुमको ही लिख देती हूं,
जिन शब्दों में लिखती हूं तुमको उसमें कहीं खुद को भी खो देती हूं,
मेरे बारे में भी मैं अक्सर तुमको ही लिख देती हूं,
अगर कोई बात हो लिखनी उसे भी अक्सर तुमसे जोड़ कर लिख देती हूं,
मेरी कलम भी जानती हैं मेरे मन की बात तुम भी कभी जानो,
लिखो तुम भी कभी हमारा नाम अपने दिल पर, हो सके तो तुम भी हमे अपना कुछ मानो,
कभी मन करता है शब्दों को समेटकर इसकी बारिश में तुम्हे भी भीगा दू,
संग भीगू तेरे साथ तुझे अपनी हर बात बता दू,
कभी कभी लगता हैं मेरे कलम की स्याही बस तेरा ही नाम लिखा हो,
ऐसा लगता हैं जैसे वो तेरे नाम में घुलकर कागज़ पर उतरना चाहती हों,
अब तो डर लगने लगा मेरी कलम जो सिर्फ मेरी हैं अक्सर तुम्हे ही क्यों लिखना चाहती हैं,
जब भी बात करू मैं अपनी कलम से अपनी वो हर वक्त तेरी ही बात बताती हैं,
कभी दिल करता है खफा हों जाऊ अपनी कलम से क्यों वो अक्सर तेरी ही बात करती हैं,
फिर सोचता हु लगता है बो भी मेरी तरह तुझ पर मरती हैं,
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