সুব্রত জোয়ারদার   (সুब्रta)
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মনর ভাবনাগুলিকে শব্দের খেলাঘরে পরিবর্তিত করার সাধনায় সাধনারত
Joined 22 February 2020


মনর ভাবনাগুলিকে শব্দের খেলাঘরে পরিবর্তিত করার সাধনায় সাধনারত
Joined 22 February 2020

उन्होंने इबादत की बात पुछा तो हमने बताया..
तरीका पता नहीं मगर सब उन्हीं पर छोड़ रखा है।

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पुरूष ने चाहा छाँव आँचल का सदा,
तभी पत्नी में भी माँ की छाया खोजता रहा...

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इंसान मुसाफ़िर दूनिया में
फिर भी जिन्दगी दौड़ कर ही कट रही
दो पल का महंगी हो गई इतनी
कि सुकून बस अपने जनाजे में मिलने लगी...

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दिल में दबे जज्बातों को
बह जाने दो जलधारा भावनाओं की
मरू हृदय को सजीव कर दो

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न जाने क्यों परेशान हैं
सुना था जमाने से की
मोहब्बत जिन्दगी का पैगाम है
फिर इतना दर्द क्यों हैं इसमें
क्यों ये तोड़ देता है
इश्क़ में डूबा शख्स
हार क्यों जाता है।

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मर्द को मोहब्बत में उम्मीदें लगाना नहीं चाहिए,
उन्हें बस खड़े उतरना हैं, किसी इम्तिहान के तरह।

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तुम पुरूष हो, सह लो
धूप,बारिश, जीवन की झंझावातें
तुम पुरूष हो, छुपा लो
दर्द, सदमें, निराशाएँ... आँसुओं को
तुम किसान ही हो जीवन की
जिम्मेदारियों को सींच खुशियाँ लाना है तुम्हें।
खुश चेहरों को देखने की चाहत में
तुम्हें मुस्कुराकर अपमानों को सहना हैं।
तुम पुरूष हो, संघर्ष करों
क्योंकि तुम्हारा सम्मान तुम्हारी जेब तय करता हैं।





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नफरत के आशियाने में बैठ गुरुर करते हो..
कल टूट कर बिखर जाने पर अफसोस न करना।

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जीवन में संघर्ष अनिवार्य हैं,
मगर यह अन्तर्मन में न होकर बाह्य हो तो
आप सफलतापूर्वक इसका सामना कर सकते हैं।

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हमने मोहब्बत इस कदर किया की
उनसे दूर रहकर भी भूल न सकें
और वो जरा रूठी क्या
हमें अनजान ही बना दिया।

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