हम तुम्हें चाह तो सकते हैं पर एक शर्त पर
हम हमेशा तुम्हारे मुताबिक कपड़े नहीं पहनेंगे
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हम हमेशा तुम्हारे मुताबिक कपड़े नहीं पहनेंगे
(सुब्र... read more
ये ही अच्छा था की मैंने बात तुमसे की नहीं थी
कर ली होती तो तुम्हें होता भुलाना खूब मुश्किल-
बढ़ा तो सकता हूँ बाल मैं भी अपने बसर्ते
लोग तुझसे ये मेरी जुदाई का गम समझेंगे-
चूमे तुम्हारे गाल पर होठों को छोड़ कर
मैंने गज़ल लिखी मगर मतला नहीं कहा
बिछड़ के बदलते सभी हैं नाम और नम्बर
हमसे तो एक ब्रासलेट बदला नहीं गया
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छोड़ दी हमने कई आदिम हसींनाएँ मगर
मुझसे फ़कत एक सिगरेट छोड़ी नहीं गयी-
मैसेज का तेरे इंतज़ार झेला नहीं गया
हिजरत का हमसे खेल ये खेला नहीं गया
मूँद कर के आँख थे उसपर सवार हम
ऐसे गिरे उस शाख से संभला नहीं गया
बिछड़ के बदलते सभी हैं नाम और नम्बर
हमसे तो एक ब्रासलेट बदला नहीं गया
मेरे दिलों दिमाग का अद्भुत तवाज़ुन है
तुमसे बिछड़ के यार मैं पगला नहीं गया
चूमे तुम्हारे गाल पर होठों को छोड़ कर
मैंने गज़ल लिखी मगर मतला नहीं कहा
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गर वो सब कुछ पा जाता है
तो फिर तेरा क्या जाता है?
जाने वाला क्या था तेरा?
चुप हो काफ़िर क्या रोता है ?
सारे काम ख़ुदा करते हैं
अपने बस में क्या होता है?
होना ईश्वर का मतलब है
जो भी हो अच्छा होता है-
इसी वजह से मैंने जल्दबाज़ी ना करी इज़हार की
मुझे लगता था की सब्र का फल मीठा होता है-
बात हमारा इतना आगे पहुँच चुका था
नाम तलक हमने बच्चों के सोच लिये थे-