Subhranshu Shekhar Dash   (कर्मण्येवाधीकारस्ते)
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Joined 13 October 2018


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Joined 13 October 2018

अंदर कुछ तो बदलने लगा है ....

बोलने को डरती गुड़िया आज बोलने लगी है,
गीता वाला अर्जुन अब रण में उतर रहा है,

युद्ध के लिए थरथराता हाथ आज गांडीव उठा लिया है,
ब्रह्मास्त्र का विध्वंश अब होना बाकी है,

सारी तूफ़ानों को काट के आज एक वीर जन्मा है,
अहंकार की नाश के लिए आज वीरभद्र आ खड़ा है,

अपनी नजर अपनी और मोड़ने लगा है,
अंदर कुछ तो बदलने लगा है।।

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9 NOV 2024 AT 1:17

"आया है मुझसे लड़ने"

आया है तू मुझसे लड़ने,
यह याद रखना तू।।

आया है तू मुझसे लड़ने,
सामने तो देख, कहीं तू ही तो नहीं है तुझसे लड़ने।।

आया है तू मुझसे लड़ने,
यह याद रखना तू।।

लाख कोशिश करले तू,
चाहे थक सा जाए तू,
चाहे सारे दम निकाल दे तू,
खुदी को खा कर, भस्मासुर बनेगा तू,
अहंकार को खा कर खुद सुध होगा तू,

आया है मुझसे लड़ने,
यह याद रखना तू।।

हुंकार भरना है तुझे सागर से भी ऊंचा,
अंदर का अंधकार मिटेगा जो तू इसे खींचा।

दम लगाना है तुझे कल से भी अच्छा,
एक एक घुसा बनेगा जवाबों का गुच्छा।

बुलंदियों को चूमना स्वभाव जो ठहरा,
डर से लड़ना है तुझे; ऐसे ही मुस्कुरा।

दुनिया तो झुकता है सच के आगे,
है दम ? युद्ध जो करना है तुझे खुद के आगे।

अपने भीतर अर्जुन को मिटा कर कृषस्थ होगा तू,
ऐसी दिव्य लड़ाई में भला पीछे कैसे रह सकता है तू?

आया है मुझसे लड़ने,
यह याद रखना तू।।

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9 NOV 2024 AT 1:07

आया है मुझसे लड़ने........

आया है तू मुझसे लड़ने,
यह याद रखना तू।।

आया है तू मुझसे लड़ने,
सामने तो देख, कहीं तू ही तो नहीं है तुझसे लड़ने।।

आया है तू मुझसे लड़ने,
यह याद रखना तू।।

लाख कोशिश करले तू,
चाहे थक सा जाए तू,
चाहे सारे दम निकाल दे तू,
खुदी को खा कर, भस्मासुर बनेगा तू,
अहंकार को खा कर खुद सुध होगा तू,

आया है मुझसे लड़ने,
यह याद रखना तू।।

हुंकार भरना है तुझे सागर से भी ऊंचा,
अंदर का अंधकार मिटेगा जो तू इसे खींचा।

दम लगाना है तुझे कल से भी अच्छा,
एक एक घुसा बनेगा जवाबों का गुच्छा।

बुलंदियों को चूमना स्वभाव जो ठहरा,
डर से लड़ना है तुझे; ऐसे ही मुस्कुरा।

दुनिया तो झुकता है सच के आगे,
है दम ? युद्ध जो करना है तुझे खुद के आगे।

अपने भीतर अर्जुन को मिटा कर कृषस्थ होगा तू,
ऐसी दिव्य लड़ाई में भला पीछे कैसे रह सकता है तू?

आया है मुझसे लड़ने,
यह याद रखना तू।।

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11 APR 2024 AT 11:17

प्रकृति में चल रहा जो माया का ही चक्र है,
माया में जो जल मरे उसे कामी, क्रोधी कहते हैं,
जो जन्मा है संसार में बो मृत्यु की अधीन है,
तुम जन्म - मृत्यु से परे जिसे अव्यक्त भी कहते हैं।

जीवन ऐसी युद्ध है जिसे लड़ना अनिवार्य है,
तुम चाहे कर्ण हो या अर्जुन, भागना असंभव है,
जो बिरता का प्रतीक है बो प्रेम को निभाता है,
प्रेम रूपी धनुष का अहंकार ही लक्ष्य है।

तुम कायर नहीं जो प्रतिक्षा में जिएगा,
कृष्ण बाहर नहीं अंदर से ही जगेगा,
अहंकार की भीड हो या अंधकार की नीड हो,
आत्मज्ञान के आगे अज्ञान टिक नहीं पाएगा।

झूठ, प्रपंच, पाखंड, धोखा इनसे क्या खेलना,
पाप - पुण्य, हानि - लाभ, इनसे क्यों उलझना,
अद्वैत जो ठहरे तुम तो द्वैत से क्यों डरना,
राम दूत साज कर रावण से जा भिड़ना।

ज्ञान का स्वरूप हो, ज्ञान को साधो तुम,
काल रूपी कल में ज्ञान का सूरज तुम,
प्रेम की किताब में कर्म रूपी स्याही तुम,
एसी जीवन पा कर मृत्यु से क्यों भयभित तुम।

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11 JAN 2024 AT 13:58

ପ୍ରେମ

ପ୍ରେମ ପ୍ରେମ ଶବ୍ଦ ଗାଇ ହୁଏ ଏ ସମାଜ,
କିଛି ନୁହଁ ଏ ଖାଲି ସମ୍ଭୋଗ ର ଫମ୍ପା ଆବାଜ।

ଆଜି ପାହାଡ଼ ସାଜିଛି ଇଏ ସବୁ ପ୍ରଗତି ଆଉ ବିଜୟ ର ପଥେ,
ନାଇଁ! ନାଇଁ!, ପ୍ରେମ ନୁହଁ ଇଏ ଯାହା ନେଇ ଯାଉଛି ଆମକୁ କୁପଥେ।

ଶତ୍ରୁ ସାଜିଛି ଆଜି ଇଏ ବିଦ୍ୟା ଆଉ ଜ୍ଞାନ ର ଦିଗେ,
ପ୍ରେମ ଯୋଗୁଁ ପରା ସତ୍ୟ, ନ୍ୟାୟ ର ସୂର୍ଯ୍ୟ ଜାଗେ।

ଯେ ପ୍ରଗତି ର ପଥେ ପଥର ର କାନ୍ଥ ସାଜେ,
ସେ ଭଲା କେମିତି ଗାଇ ପାରିବ ପ୍ରେମ ର ଗୀତ ଯେ?

ପ୍ରେମ ନୁହଁ ଇଏ, ସମ୍ଭୋଗ ଆଉ ପଶୁତା ର ସଙ୍ଗୀତ,
ଶକୁନୀ ର ମାୟା ଜାଲେ ଫସନି ହେ ମୋର ସଙ୍ଗାତ।

ପ୍ରେମ ନୁହଁ ଇଏ, ଅଧିକ ସମ୍ଭୋଗ ର ଛଳନା ଲାଗେ,
ଭଲା ଦୁର୍ଯୋଧନ, ଦୁଃଷାସନ କେବେ ଚାଳିଲେଣି କୃଷ୍ଣ ଙ୍କ ସାଙ୍ଗେ?

କାନ୍ଦେ କବୀର, କାନ୍ଦେ ତୁଳସୀ, କାନ୍ଦେ ଏଠି ରହିମ, ମୀରା ଆଉ ଫରିଦ,
ଜାଗ ଜାଗ ହେ ଅର୍ଜୁନ, ଏ ହେଉଛି ପଞ୍ଚଜନ୍ୟ ର ପ୍ରଚଣ୍ଡ ନାଦ।

ଛାଡ ଏ ପାଖଣ୍ଡତା ଆଉ ଛାଡ ବାଦ ଓ ବିବାଦ,
ସତ୍ୟ ର ପଥେ ଗାଣ୍ଡିବ ଧରି ଅନ୍ୱେଷଣ କର କୃଷ୍ଣ ଙ୍କ ପାଦ।

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11 JAN 2024 AT 13:07

ସୁନ୍ଦରତା

ସୁନ୍ଦରତା ର ବ୍ୟାଖ୍ୟା କାହୁଁ ଜାଣିବ ନର,
କଥା ତ ଇଏ ସାକ୍ଷାତ ପରଂବ୍ରହ୍ମଙ୍କର।

ଯେଉଁ ହୃଦୟ ଜାଣେ ଆତ୍ମଜ୍ଞାନର କିରଣ,
ତା'ଠୁ ସୁନ୍ଦର ଭଲା ଆଉ କ'ଣ?

ଯେଉଁ ବୁଦ୍ଧି ଜାଣେ କୃଷ୍ଣ ଙ୍କ ବିଜ୍ଞାନ,
ସିଏ ପରା କରେ ସୁନ୍ଦରତା ର ସୁଧା ପାନ।

ଯେଉଁ ଆଖି ଥାଏ ନିଜ ଅନ୍ୱେଷଣରେ,
ତା'ଠୁ ଅଧିକ ଆଉ କିଏ ସୁନ୍ଦର ହୋଇ ପାରେ?

ଯେଉଁ ଜିହ୍ୱା କରେ ପ୍ରେମ ର ବ୍ୟାଖ୍ୟା,
ଯେଉଁ କର କରେ ଧର୍ମ ଆଉ କର୍ମ ର ରକ୍ଷା,
ତାହେଲେ କୁହ ପ୍ରେମ କ'ଣ ନୁହେଁ ସୁନ୍ଦରତା ର ଦୀକ୍ଷା।

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1 JAN 2024 AT 18:14

କାଳ ର କପୋଳ ତଳେ, ମାୟା ର ପ୍ରଭାବେ ଦିଶେ ସବୁ ନୂଆ ଆଉ ପୁରୁଣା।
ଇଏ ନୁହେଁ ତ ଆଉ ଆମ ପାଖଣ୍ଡ ବଜାର ର ଅନ୍ଧ ଧାରଣା ?

ସମୟ ତ ଏକ ଅବିରତ ନଦୀ ର ଧାରା,
ନୂଆ ଆଉ ପୁରୁଣା ମାତ୍ର ମୃଗ ତୃଷ୍ଣା ଏଠି ପରା।

ମାୟା ଏଠି ସୃଷ୍ଟି କରେ ନୂଆ, ପୁରୁଣା ର ଖେଳନା,
ସମୟ ଏଠି ଲୁଚକାଳି ଖେଳେ ଆଉ କରେ ଛଳନା।

ତମେ ନୁହଁ ଏ ଚକ୍ରବ୍ୟୁହ ର ଖେଳନା,
ଉଠ ତୁମେ ହେ! ଅର୍ଜୁନ ଆଉ କର ଧର୍ମ ର ଗର୍ଜନା।

କୃଷ୍ଣ ଙ୍କ ଶଙ୍ଖ ନାଦ ରେ ହେଉ ଯୁଦ୍ଧ ର ଘୋଷଣା,
ତୁମେ ଗାଣ୍ଡିବ ଧରି କର ସର ସନ୍ଧାନା।

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25 NOV 2023 AT 15:27

।। तुम योद्धा बनो।।

अधर्म की रणभूमि में तुम अकेला अर्जुन बनो,
मृत्यु की इस पथ पर तुम चिरंजीवी बनो,
तुम योद्धा बनो, तुम योद्धा बनो..

कायरों की इस घोर अन्धकार में,
तुम सत्य की सूरज बनो,
तुम योद्धा बनो, तुम योद्धा बनो..

तुम सत्य की और प्रेम की धार बनो,
तुम अधर्म और अन्याय की छाती पर वार बनो,
तुम योद्धा बनो, तुम योद्धा बनो..

बहरों की इस दुनियां में, बधिरों की इस समाज में,
तुम सत्य की विस्फोट बनो,
तुम योद्धा बनो, तुम योद्धा बनो..

काट डालो तुम सारे बाधाएं और बंधनों की रस्सी,
फिर बनो तुम धर्म और कर्म की रासी,
तुम योद्धा बनो, तुम बनो अंधक की आग में शशि..

तुम उठाओ गांडीव हर उस अज्ञान की अहंकार पर,
भ्रष्टता की कुरुक्षेत्र में युद्ध्यस्व बिगतज्वर,
तुम योद्धा बनो, तुम बनो दुख और कष्ट की प्रतिकार..

तेजी से आगे बढ़ रहें हैं, अधर्म, अन्याय और पाप,
परंतु यह सब नहीं सह सकते सुदर्शन का ताप,
तुम योद्धा बनो, तुम बनो राष्ट्रदीप..

रावण की इस लंका में,
तुम प्रेम की हुंकार बनो,
तुम योद्धा बनो, तुम राम बनो..

तुम हर उस पाप की गड़ पर ब्रह्मास्त्र बनो,
उठो कृष्ण की अर्जुनों, युद्ध को अपना शान मानो,
तुम योद्धा बनो, तुम योद्धा बनो..

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15 SEP 2023 AT 15:23

सूतो वा सूतपुत्रो वा यो वा को वा भवाम्यहम्।
दैवायत्तं कुले जन्म मदायत्तं तु पौरुषम्॥

अर्थात्:
मैं चाहे सूत हूँ या सूतपुत्र, अथवा कोई और। किसी कुल-विशेष में जन्म लेना यह तो दैव के अधीन है,
लेकिन मेरे पास जो पौरुष है उसे मैने पैदा किया है॥

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21 AUG 2023 AT 21:58

शादी

हर घर की यही कहानी,
कि शादी है सब से बड़ी परेशानी।

कभी रुलाती है बेटी को,
कभी रुलाती है माता - पिता को।

एक पाखंड की बात है, पता है?
जब मानते है बेटियांँ होती है पराई घर की लुगाई,
तो क्यों करते है आंख हम पानी पानी?

तीन अक्षर की होती है शब्द 'सम्बन्ध',
एक शब्द भर हो कर भी हमें कर सकती है बंद।

अरे ऐसी भी क्या हमारी प्रेम रूबानी,
कभी सुनी है मीरा और राधा की नादानी?

प्रेम थोड़े ही रुकावटें लाती है,
प्रेम तो खुले आसमा देती है।

प्रेम से होती है सारा जहांँ,
पर हम दुंड रहे हैं उसे पता नहीं कहांँ कहांँ।

क्या सच में शादी है दो दिलों की कहानी?
या हमारी मन और अहंकार की मनमानी?

अरे ओ नए उभरता समाज के किरण,
संस्कृति, नीति, परम्परा आदि इत्यादि की कितने करोगे अब अंधानुकरण ?

समाज के सूरज हो कर भी,
क्या अपनी गंदगी में डूब मरना सही है कभी भी?

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