वो पहली सी एक पहल है, जिसे सुलझाए ना सुलझे।
वो ढलते सूरज की गजल है, जिसे रोज़ सुनने को यह दिल तरसे।
वो चुपके से आने वाली हसीन रात है,जिसकी गहराई एक राज़ है।
वो थके तो हार न मानने वाला हमराही है,जिसके हाथ थामे चलना ही चाहत है।
वो आंखों में बसने वाला सपना है,जिसे देखना मेरे हक सा है।
वो खुशी देने वाला दिल का टुकड़ा है,जिसे खोना खुदगर्जी है।
वो थोड़ा रूठने वाला जज़्बाती है, जिसे मनाने में मेरी सारी दुनिया कायम है।
वो मुझमें बसे मेरे दिल सा है, जिसपे अगर वो चाहे तो मेरी पूरी जिंदगी कुर्बान है।
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