प्रेम है नहीं कोई शब्द जिसे लिख पाओगे।
प्रेम है नहीं कोई अर्थ जिसे समझ पाओगे।
प्रेम तो बस एक अनन्त सफ़र है,
जिसमें बह गए तो सिर्फ बहते जाओगे।।-
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जब कोई ख़्याल नहीं,
दिल करे सवाल यही,
अक्स बन के आंखों में,
आये क्यूँ चेहरा वही।
हाथ में ले के हाथ मेरा,
छोड़ेंगे न साथ तेरा।
ये बात जिसने थी कही,
छोड़ दिया साथ मेरा,
दो कदम चले भी नहीं।
ये कैसा रिश्ता हयात सा,
मुझमें है रहता सांस सा।
मुझसे उससे कोई बात नहीं,
पर लगता हरपल साथ सा।
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कहा था न! भूल जाओगे ,
अक्सर इसी बात पे लड़ा करते थे तुम।
कहा था न! याद आओगे,
अक्सर इसी बात पे चुप रहा करते थे तुम।
मैं तो अब भी गुजरता हूँ,
तेरी यादों की दहलीज से।
तुम रोज मुकर जाती हो,
अपने इस तमीज़ से।
कहा था न! छिपा नहीं पाओगे,
हमारे प्यार के हिस्से को।
कहा था न! निभा नहीं पाओगे,
हमारे दरमियां के रिश्ते को।
पर हमेशा मुझे ही चाहोगे,
अक्सर इसी बात पे चिढ़ा करते थे तुम।
कहा था न!भूल जाओगे.......-
आज मेरी मुलाकात वासना से हुई।
उसने कहा मैं परिमाप हूँ जिंदगी का।
बिना मेरे न कुछ गलत है न कुछ है सही।
मैं हूँ तो गलत है ,नही हूँ तो है सब सही।
मेरे कई रूप है जिसमें जिंदगी की धूप है,
वगरना ये जिंदगी एकदम कुरूप है।।
मेरे तीखे बाणों से नहीं है कोई बचा।
मेरे द्वारा ही है सब कुछ यहां रचा।
हो जाता हूँ मैं सवार जिस पे,
होते नहीं बेड़ापार उसके।
न मैं स्त्री हूँ न मैं पुरुष हूँ,
पर दुनिया की हर शै में मौजूद हूँ।
तुम्हारे होने का भी ,
एक मैं ही वजूद हूँ।-
-:आवारा आँसू:-
आंखों की गलियों में फिरता आवारा आंसू,
पलकों से तेरे घर का पता पूछता रहा।
मयस्सर न हुआ इसे तुम्हारे घर का पता,
पर तस्वीर लिए तुझे फिर भी ढूंढता रहा।
भरोसा था इसे जिंदगी के जीवन चक्र पे,
पर धीरे-धीरे वो भरोसा भी टूटता रहा।
तेरे लिए इश्क़ में इस कदर बावरा हुआ,
के नाम लिपटा के साँसों से तेरा घूमता रहा।
खुश्क हो गया है खुद में तुझे ढूंढते-ढूंढते,
तेरे नाम का जो रट था वो भी छूटता रहा।-
कितना भी दर्द दे ये जमाना।
मगर इस अदा से मुस्कुराना।
की देख कर के तुम्हें,
रो दे ये सारा जमाना।-
अब करूँगा भी क्या तुमको पा कर।
उससे ज्यादा दिया है ,
तूने मुझसे दूर जा कर।
अब तो हर एक शख़्स में ,
कोई न कोई अदा दिख ही जाती है तेरी।
पल भर के लिए ही सही,
पर ख्यालों में तू हो जाती है मेरी।
दिल खुश हो जाता है तसव्वुर में जा कर।
जैसे पहली दफ़ा हुआ था तेरा दीद पा कर।-
बाप जलता है धूप में,
माँ चूल्हे पे जलती है ,
तब जा कर परिवार को,
दो वक्त की रोटी मिलती है।-
इन तपती रातों में नींद नहीं आ रही है,
आओ न.....!
अपने शबनमी होंठों को मेरे आँखों पे रख दो।-
खामोशियाँ बयाँ कर देती हैं
उनका हाल-ए-दिल ,
पर कानों को सुकूँ तो
उनके लफ़्ज़ों को सुन के मिलता है।-