तेरे शहर का पानी पी कर कुछ ऐसे बदली हूं,
झूठ बोल जाती हूं और हैरत नही होती मुझे।
कोई आए या चला जाए खुश रहती हूं,
अब किसी शक्श की आदत नही होती मुझे।
इतनी मसरूफ हूं जीने की हवस में,
के अब किसी से भी नफ़रत नही होती मुझे।
तेरे कहने पे दोबारा बदल दिया शहर मैंने अपना,
अब नई जगह से वहसत नही होती मुझे।
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कुछ ख्वाब लिखती हूं कुछ ख्याल लिखती हूं।
उजाले में तो हर कोई निहारता है तुम्हे,
जो तुम्हे तुम्हारे ही अंधेरों में देखना चाहे,
बस समझ लो वहीं इश्क़ है।
तुम्हारी बेबाक मुस्कान पर हर कोई फिसलता है,
जो तुम्हारी हंसी में छुपे आंसू भी देखना चाहे,
बस समझ लो वहीं इश्क़ है।
बात तो तुम्हारी हर कोई कर सकता है,
जो तुम्हारे किस्से तुम्ही से सुनना चाहे,
बस समझ को वहीं इश्क़ है।
तुम्हारे चेहरे की तारीफ तो कोई भी कर सकता है,
जो तुम्हारे दागों को गिनना चाहे,
बस समझ लो वहीं इश्क़ है।-
उसको दिल से चाहा पर उसे पा ना सके,
जो हमें चाहते रहें हम उन्हे चाह ना सके।
बस दिल टूटने का ही तो खेल है सारा,
हमने किसी का तोड़ा,और अपना बचा ना सके-
इतने वक्त बाद भी,
हुआ क्या कमाल पूछते हैं।
आज भी कुछ लोग हैं जो ,
मुझसे तेरा हाल पूछते हैं।
बता नहीं पाती मैं उनको के,
तुझे याद किए बिना कोई रात नहीं होती।
बस हंस के कह देती हूं,
के अब हमारी कोई बात नहीं होती।
क्यूं हुए है जुदा,
अब मुश्किल है सबको समझाना।
इश्क़ की बात हो जब भी कहीं,
लाज़मी है ज़ेहन में तेरा नाम आना।-
हंसते बहुत हैं,मुस्कुराते कम हैं,
रोते नहीं हैं,बस आँखें नम हैं।
सवाल सी ज़िन्दगी के,जवाब नहीं है,
यहां सब अच्छे हैं,कोई खराब नहीं है।
गुनेहगार है निर्दोष,अपने ही केस में,
पराये हैं सब यहां, अपनों के भेष में।-
तुम महज किसी बहाने से मिलने आ जाना मुझसे,
कोई हमारी मुलाक़ात के बारे में पूछेगा तो मैं इत्तेफाक़ कह दूंगी।-
एक बंद कमरा हो गया है दिल,
जिसके खिड़की दरवाजे भी बंद रखे हैं मैंने।
दिल टूटा है पर उनमें यादें अभी भी बाकी हैं,
जो तेज़ चलती थी धड़कने अब मंद रखा है मैंने।-
खामोशियां लिख दूं या जुबां लिख दूं,
आंसू लिख दूं या मुस्कान लिख दूं।
दूरियां जो आयी दर्मियां उनको लिख दूं,
या जो मोहब्बत थी उनका फरमान लिख दूं।-
उलझे हो मेरे लफ्ज़ों में मेरी आंखों की गहराई को समझों ज़रा,
मेरे फ़िक्र के पीछे छिपी मोहब्बत की गहराई को समझों ज़रा।
तुम्हारे संग बिताए लम्हों की यादों को रोज़ उधेड़ती हूं,
पर तुम्हारे दिए ज़ख्मों पर मेरी नई बुनाई को समझो ज़रा।
तुम्हारे धोखे के बाद भी यक़ीन बरक़रार रखा है तुमपे,
तुम्हारे इश्क़ के रंग में रंगी मेरी रंगाई को समझो ज़रा।
एक अरसे से मैंने आंखें नम और लबों पर हंसी रखी है,
तुम कभी तो मेरे दर्द के सफ़र की लंबाई को समझो ज़रा।
तुम्हारे मेरे दर्मियान कुछ तो आज भी जिंदा रखा है मैंने,
तुम भी तो इस टूटे हुए रिश्ते की अंगड़ाई को समझो ज़रा।
मानते नहीं हो तुम,पर ज़रूरत तुम्हें आज भी है मेरी,
अरे!तुम भी तो अपने दिल की तन्हाई को समझो ज़रा।-
आज सोचा कुछ अलग लिखूंगी,
पढ़ चुके जो तुम वो किताब अब ना खोलूंगी।
पर क्या करूं आज ही मैंने एक खबर सुनी,
उन बलात्कारियों ने फिर से एक छोटी सी बच्ची चुनी।
दहेज़ के लालचिओं ने फिर से एक साज़िश बुनी,
और आग़ में झुलस गई फिर एक बहू थी जो गुनी।
आज सोचा था कुछ अलग लिखूंगी।
लक्ष्मी,दुर्गा,काली,सरस्वती मत मानो मुझे,
मैं भी इंसान हूं,इंसान ही मानो मुझे।
सरस्वती मानते हो ना मुझे,
तो मुझे क्यूं शिक्षा से बंचित रखते हो?
लक्ष्मी मानते हो ना मुझे,
फिर मुझे जयदात से दूर रखने के लिए क्यूं चिंतित रहते हो?
देवियों की जगह पर रखते हो ना मुझे,
फिर क्यूं रोज़ मैं अपमान और तिरस्कार सेहती हूं?
बराबरी की बातें तो फिर कभी कर लेंगे,
क्यूं मैं इस समाज में हिस्सेदार भी नहीं लगती हूं?
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