subh gupta   (SυႦhअंस)
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Joined 11 April 2020


Joined 11 April 2020
16 APR 2020 AT 15:35

जीवन के इस मोड़ पर,सबको आना ही है एक दिन।
खाट परे सोचे मन ब्याकुल,निज से बड़ा ना कोई दूजा दीन।
जो किया है,जैसा किया है सब याद आता है पलछिन।
कुछ ना हुआ है और न होगा अब पछताने से इसदिन।


बिता बालापन खेल कूद में,भड़ी जवानी सोया।
अब क्या सोचने से होगा, क्या अनमोल है हमने खोया।

एक समय हमारी भी कुछ पहचान हुआ करती थी।
वक़्त के मार से बैठा बेबस,गुनगान हमारी भी हुआ करती थी।
तीलतील करके जोड़ा था मैंने,सर खड़े है उसके बटवारे;
सहारा जिसे समझा था मैंने,अलग हो,दूर खड़ा है किनारे।

माया मोह प्रलोभन छोड़,अल्प जो सुमिरन किया होता।
जीवन के इस कठिन समय पर ऐसे ना हमे कष्ट होता।
- subh gupta

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30 MAY 2020 AT 13:48

बचपन की एक आस पुरानी, जिसे सोच दुखी मै रहता था।
काश! मेरे भी होते "बड़े-भैया", ऐसा हरदम सोचा करता था।


जीवन की मोड़ में माता-पिता व, छोटी बहन का साथ मिला।
लेकिन कंधो पर रखने वाला, बड़े भैया का हाथ न मिला।


वर्तमान का यह ठठ जीवन, जहाँ अपने भी पराये हो जाते है।
प्रेम और एकता का स्वरुप भाइयो में, विरले ही देखे जाते है।


मृग स्वरूप यह आयुष्य मेरा, यूँ ही वन-वन भटके फिरता था।
कस्तूरी स्वरूप भैया हमारे, निकट रहते हुए नही दिखता था।


राम को जैसे मिले थे लक्षमण, बलराम को कृष्ण कन्हइया।
आखिरकार इस जन्म में मुझको, मिल गए प्यारे बड़े भैया।


विश्वास हरदम बना रहे दोनों में, और रहे प्रभु में आस्था।
फिर आन पड़ी कैसी भी मुश्किल, निकाल लेंगे हम राश्ता।


भैया संग मिली भाभी मुझको, क्या लिखू उनके प्रति मेरी अभिलाषा।
जिससे मिले हँसी,ठिठोली व अपनापन, यह है भाभी की परिभाषा।


सम्भाले सबको भैया की परछाई बन, रहे घर आँगन खिला खिला।
सौभाग्यवान ना मुझसा कोई, जिसको भैया-भाभी का प्यार मिला।

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29 APR 2020 AT 23:43

देखते देखते यूँ समय बीत जाना,
देखते देखते प्यारा बचपना खो जाना,
देखते देखते स्कुल,कॉलेज का छूट जाना,
देखते देखते प्रिय मित्र का खो जाना,
देखते देखते ऐसे बड़े हो जाना,
देखते देखते अपनों से ही दूर हो जाना,
बड़ा याद आता है अनमोल लमहों का अचानक खो जाना।
-Subhअंस

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28 APR 2020 AT 3:08

दिल्लगी करते है लोग, फिर टूट जाते है लोग।
अपने टूटे दिल की किस्से सुनाते है लोग।

भड़ी भीड़ में तनहा खुद को, जब पाते है लोग ।
अधूरा पाकर खुद को दिल्लगी कर जाते है लोग।

पल भर का साथ देकर अक्सर भूल जाते है लोग।
फिर अकेले बैठे ग़म में, आँसू बहाते है लोग।

न जाने अपने ज़िन्दगी से, दिल्लगी नही कर पाते है लोग।
काटना है इसे मुश्कुरा के, यह समझ नही पाते है लोग।

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28 APR 2020 AT 1:09

अफ़सोस नही गलतियों का कर गया जो बेहोशी में,
जब खबर लगी असलियत की,
अब फक्र खुद पर करता हुँ।

राह अभी भी दुर है लेकिन,
बढ़ते रहने से नही डरता हुँ।

अफ़सोस नही किसी का मुझे,
अब उम्मीद खुद से करता हुँ।
ज़िन्दगी सीखा गई कुछ मिटा गई,
दुनियादारी मै भी अब करता हुँ।

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23 APR 2020 AT 18:19


तरस गए है उसकी वफ़ा के लिए,
फिर न प्यार करेंगे खुदा के लिए,

मोहब्बत की अदालत में हमेशा
हम ही चुने जाते है सजा के लिए।

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14 APR 2020 AT 21:22

मन को क्या-क्या नही करने का मन करता है।
यह पल पल बस, यहाँ वहाँ अविचल करता है।
अबोध बालक स्वरुप यह,
जिसे गलत सही का भेद नही,
मन एक अमर पक्षी है,जो खुले गगन में उड़ता रहता है।

क्या गाथा सुनाऊ, इस चपल मन की,
ना कोई ओर है ना कोई अंत है इसकी।
इसे शांत करने हेतु प्रयास किया जिसने भी,
उसे भ्रमण कराया है पर्वत,पहाड़ और जंगल की,
फिर भी अथक प्रयास ने कहा विफलता पाया है,
काबू पाके इस मन पर उन्होंने इतिहास रचाया है।

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13 APR 2020 AT 11:34

इस धरातल पर ज्ञान-भंडार की,
कोई सीमा नही है।
हासील करलो जितना जो करना है,
जीवन का मतलब सिर्फ जीना नही है।

मानते है दुःख भरा है यह जीवन,
लेकिन आगे बढ़ने की प्रयत्न की
कोई सीमा नही है।

सफलता के कठिन पथ पर,
अड़चनो की सीमा नही है।
दृढ अगर लक्ष्य है,
कोई रोक तुम्हे सकता नही है।

- subh gupta

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12 APR 2020 AT 23:27

ख्वाहिशे खत्म होने का नाम नही लेती है।
आज कुछ, तो कल कुछ,
हर दिन खुद को एक नया सुझाव देती है।

कुछ ख्वाहिशे होते, कितने निराले है;
सब साथ रहते है,
फिर भी लगता हम कितने अकेले है।

गलत है सब, सही हुँ मै और ख्वाहिशे मेरी;
अक्सर सम्भलता हुँ , हो जाती है जब देरी।

ख्वाहिशे भी पूरी करनी है हमे,
बन्धनों में बन्द भी,नही होना हमे।
सच बताऊ तो बहुत कष्ट देती है,
अपनी कुछ निरंकुश ख्वाहिशे हमे।

और यह जो ख्वाहिशे है,खत्म होने का नाम नही लेती है।
आज कुछ, तो कल कुछ,
हर दिन खुद को एक नया सुझाव देती है।।

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12 APR 2020 AT 17:20

माँ..मै अपनी ख्वाहिशे मिटा दूंगा।

जीवन के मुश्किल हालातो में,
एक तेरी नही से,
दुःख में भी मुश्कुरा कर दिखा दूंगा।



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