सत्यम् शरण  
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Joined 29 November 2020


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शब्दों से अधिक
हृदय में छिपी भावनाओं का मोल होता है,
कदाचित कभी कोई तुमसे कहे - चले जाओ
तब तुम ठहर जाना उस समय....

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भारतीय इतिहास को गौरवान्वित करने वाला, वीरों और महान विभूतियों की पावन धरती बिहार के 113वें स्थापना दिवस (बिहार दिवस) पर आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं। हमारा यह प्रदेश जिसमें में हमारी संस्कृति और परंपरा के केंद्र-बिंदु रहे यहां के परिश्रमी और प्रतिभाशाली बिहारवासियों की अहम भागीदारी है।

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पुरुषों के पास मायका नहीं होता, ना कोई ऐसा आँगन, जहाँ वे निःसंकोच लौट सकें, जहाँ कोई माथा चूमकर कहे-
"थक गए हो न? थोड़ा आराम कर लो..."
वे चलते रहते हैं निरंतर, एक पुत्र, एक पति, एक
पिता बनकर, अपने कंधों पर जिम्मेदारियों का
बोझ लिए, पर कभी खुद के लिए ठहर नहीं
पाते...!

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"क्वापि सख्यं न वै स्त्रीणां वृकाणां हृदयं यथा"
स्त्रियोंकी किसीके साथ मित्रता नहीं हुआ करती।
स्त्रियोंका हृदय और भेड़ियोंका हृदय
बिलकुल एक- जैसा होता है।

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दीपावली मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
रामनवमी मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
नवरात्र मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
श्राद्द करते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
अमावस्या मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
दुर्गा अष्टमी मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
गणेश चतुर्थी मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
रक्षाबंधन मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
करवाचौथ मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
शिवरात्रि मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
होली-दुलहण्डी मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार
दशहरा मनाते हैं – विक्रम सम्वत् के अनुसार -
और कितने उदाहरण दूं अब ?
सबकुछ तीज-त्योहार विक्रम सम्वत् पंचांग के अनुसार मनाते हैं तो फिर
"नववर्ष" विक्रम सम्वत् पंचांग के अनुसार क्यों नहीं मनाते ??

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30 DEC 2024 AT 19:10

दर्पण, स्मरण, स्वप्न, वचन
कब कहां खंडित हो जाए कुछ पता नहीं...!

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19 DEC 2024 AT 3:32

शरत्पद्मोत्सवं वक्त्रं वचश्च श्रवणामृतम् ।
हृदयं क्षुरधाराभं स्त्रीणां को वेद चेष्टितम् ॥

अर्थात् – सच है, स्त्रियोंके चरित्रको कौन जानता है। इनका मुँह तो ऐसा होता है जैसे शरद ऋतु का खिला हुआ कमल। बातें सुनने में ऐसी मीठी होती हैं, मानो अमृत घोल रखा हो। परन्तु हृदय, वह तो इतना तीखा होता है कि मानो छुरेकी पैनी धार हो।

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19 DEC 2024 AT 3:20

न हि कश्चित्त्रियः स्त्रीणामञ्जसा स्वाशिषात्मनाम् ।
पतिं पुत्रं भ्रातरं वा घ्नन्त्यर्थे घातयन्ति च ॥

अर्थात् – इसमें सन्देह नहीं कि स्त्रियाँ अपनी लालसाओंकी कठपुतली होती हैं। सच पूछो तो वे किसीसे प्यार नहीं करतीं। स्वार्थवश वे अपने पति, पुत्र और भाई तक को मार डालती हैं या मरवा डालती हैं ॥

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10 DEC 2024 AT 6:29

अपने प्रयत्नों का भी सम्मान कीजिए केवल लक्ष्य का नहीं,
कुछ लोग प्रतिभा के धनी तो हैं किंतु भाग्य के नहीं...!

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30 NOV 2024 AT 12:55

किसके लिए स्वर्ग, साकेत, वैकुंठ, गोलोक, शिवलोक
आदि दिव्यलोकों का निर्माण किया गोविंद!
कौन है यहां जो दोषी नहीं...!

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