सुख के सब साथी, दुःख में ना कोई।
मेरे राम, मेरे राम, तेरा नाम एक सांचा दूजा ना कोई॥
जीवन आणि जानी छाया,
जूठी माया, झूठी काय।
फिर काहे को साड़ी उमरिया,
पाप को गठरी ढोई॥
ना कुछ तेरा, ना कुछ मेरा,
यह जग योगी वाला फेरा।
राजा हो या रंक सभी का,
अंत एक सा होई॥
बाहर की तो माटी फांके,
मन के भीतर क्यूँ ना झांके।
उजले तन पर मान किया,
और मन की मैल ना धोई॥
श्रेणी
राम भजन
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मौन व्यक्ति सदैव दोषी ही नहीं होते,
बल्कि बुद्धिमान भी होते हैं और अधिक बोलने वाले सदैव निर्दोष नहीं होते,
अपितु महामूर्ख भी हो सकते होते हैं?-
चन्द्र टरै सूरज टरै,
टरै जगत व्यवहार,
पै दृढ श्री हरिश्चन्द्र का टरै न सत्य विचार।-
केवल रक्त का संबंध हो जाने से ही कोई अपना नहीं हो जाता, बल्कि अपना वह होता है जो अपना समझता है?
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हम सभी नें सुन रखा है कि-जैसा पात्र होता है वैसा ही दान मिलता है?
किंतु अब एक और बात की अनुभूति हुई कि-जैसा पात्र (जैसी योग्यता) वैसा ही सम्मान मिलता है?
यदि टिन का पात्र है तो टिन ही के जैसा दान मिलेगा?
और यदि टिन जैसी निम्न श्रेणी की योग्यता है तो वैसा ही सम्मान मिलेगा? पूर्व में योग्यता/बुद्धि/विचार सम्मानित होते थे और अब पैसा सम्मानित होता है?
पुरूष की सबसे बड़ी अयोग्यता, सबसे बड़ी मृत्यु अर्थ विहीन होना है?-
“Dreams don’t have an expiry date.
But all dreams should have a deadline.”
-रजत शर्मा।
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हे प्रभु!
तुम्हारी यह कैसी नीति है?
जिनसे मन/विचार मिले होते हैं उन्हें तुम अपने पास बुला लेते हो और जिनसे असीमित मानसिक/वैचारिक दूरी होती है उन्हीं के संग जीने के लिए तुम बाध्य कर देते हो?-
माता-पिता के वस्त्र फट गए पुत्री को पहनाने में?
पुत्री ने वस्त्र उतार दिए .. फ़ॉलोअर्स बढ़ाने में?-