सत्येन्द्र कादियान   (©सत्येन्द्र कादियान)
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किसान और लाइब्रेरियन
Joined 27 April 2022


किसान और लाइब्रेरियन
Joined 27 April 2022

नए रिश्ते बनाओ
प्रकृति का यही नियम है
आत्मा भी तो
जीवन खत्म होने पर
नया शरीर धारण करती है

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प्रेम ज्यादा कुछ भी नहीं
एक व्यक्ति विशेष का प्रभाव होता है
व्यक्ति चला जाता है
प्रभाव नहीं जाता

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वक़्त ने ली अंगड़ाई
देखो छुट्टी आई
सब भागे उठाकर बस्ते
मानो हल्क तक हो
ड्यूटी आई
उदासी, बेबसी, झुंझलाहट
जैसी रेखाओं को छोड़
चेहरे पर
हँसी-ख़ुशी, चमक-धमक
से ब्यूटी आई

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अपने मन को समझो
इसे आनन्द की जरूरत है
दूसरे रास्तों में दिला दो
ध्यान, व्यायाम, काम
पुरानी पद्दति से
या आजकल तो
और भी आसान हैं
डेटा, डाटा, इंस्टा

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उन चार लोगों की बातों से
जिनके कुछ कहने भर पर
तुम इतना ध्यान देते हो
वह तुम्हारी...
नफ़रत के भी लायक नहीं
जिन्हें तुम इतना मान देते हो

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वक़्त सच्चा है यही
सभी चेहरों से नक़ाब
उतरते जा रहे हैं
हम ओर मजबूत हो
निखरते जा रहे हैं
वक़्त अच्छा है यही
वक़्त सच्चा है यही

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जितने भी निकले
वह सच में
इतने खो गए
कभी लौटकर
घर को नहीं आए

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4 तरहं के लोग मिलकर
36 तरहं की प्लानिंग करते हैं

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जिसमें माँ ने बोलना सिखाया
जो कहलाई मातृभाषा
उसके बाद चले विद्यालय
वहाँ देखा A, B, C का खूब तमाशा
अपने देश-प्रदेश में ही
हिंदी को कमतर आंका
उच्च पद मान में
इंग्लिश करे धमाका
हिंदी के लिए बचा
सिर्फ एक पखवाड़ा
जैसे-तैसे कर हिन्दी-बिन्दी
भाषा का मान संवारा

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पड़ोसियों को निम्बू-मिर्ची
अपनी नून, राई
जब बराबर का खर्चा है
तो खुश रहो ना भाई

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