सत्येन्द्र कादियान   (©सत्येन्द्र कादियान)
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किसान और लाइब्रेरियन
Joined 27 April 2022


किसान और लाइब्रेरियन
Joined 27 April 2022

भाड़ में जाएं सब

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कच्ची दोस्ती
अच्छी दोस्ती
सच्ची दोस्ती

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कितनी जल्दी दिन बीत जाते हैं
अच्छे पलों को जो समेटे हों
लगता ही नहीं वह वर्षो पुरानी बात है
वह ग्वार का नला और कसौला हाथ है
तभी घंटी बजती है,
भागो हॉस्पिटल जाने की जल्दी है
वह बच्चे की पहली किलकारी
और खुशी इतनी सारी
एक हथेली में समा जाने वाला
आज कांधे तक आने लगा है
भोलापन छोड़कर अपना
थोड़ी चालाकियां दिखाने लगा है
चल जो भी हो, बैठा हूँ ना मैं
😜 तू मस्त रह 🎂😍🤴

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तुमसा कोई खूबसूरत नहीं
दो रत्न जो डाले हैं मेरी झोळी में
उनसे अच्छी कोई मंदिर की मूरत नहीं

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एक तो तोता सुंदर
ऊपर से इंसानी भाषा की
कॉपी करने लगा
इंसान को भाणे लगा
पेड़ की डाली की जगह
पिंजरे में खाने लगा,
इंसान कन्दमूल खाता था
पशुओं पर निशाने लगाता था
जहाँ मन करता चला जाता था
फिर विचार आया
फिजिकल श्रम घटाते हैं
दिमाग से कमाते हैं
पेड़ के चक्र में पड़ गया
खुद ही पिंजरे में बड़ गया

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थोड़े पागल हो जाओ
यह दुनिया...
मतवालों के लिए है
मति वालों के लिए नहीं

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मगर जाएँ कहाँ
पिंजरे को स्वंय बुना है
पँख फैलाएँ कहाँ
गलती हम रहबरों की
भला बताएँ कहाँ
दिल नहीं लगता है अब
मगर जाएँ कहाँ

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ना ही वो अपने हैं
ना ही वो सपने हैं
बस फ़ंखे बन्ध हो जाते हैं
मच्छर भिनभिनाते हैं और
यूँ ही उचट जाती है नींद

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कोई अचरज की बात नहीं

AI के दौर में
मानवीय संवेदना का
क्षीण हो जाना
कोई अचरज की बात नहीं

रोबोट के साथ रहकर
धीरे-धीरे इन्सानों का
मशीन हो जाना
कोई अचरज की बात नहीं

प्रोफेशनल लाइफ में
व्यवहारिक मूल्यों का
गिर जाना
कोई अचरज की बात नहीं

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मजबूरियों की
गठरी बांधे
घूम रहे हैं
यहाँ सभी
जिन्दा हैं
इतने कि
बस मरे नहीं

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