मगरूर थी वैसे तो मैं अपनी ही धुन मे,
कुछ साथ ऐसे मिले जो न गवार थे ,
कुछ अंजानो को अपना मान
जो एक वक़्त करीब थे मेरे काफी
उन्हें काफी करीब से जाना था,
इसलिए अब किसी और को जानने की,
न ही ख्वाहिश थी और न ही दिलचस्पी,
लेकिन वो कहते हैं न.....
कुछ दस्तक ऐसी होतीं हैं की
जिनके लिए दरवाजे ना जाने
कब और कैसे खुल ही जाते हैं,
मेरी ज़िंदगी मे भी वो दस्तक हुई
और न जाने कब कैसे दरवाज़ा खुला
और बस सब कुछ थम सा गया,
वो खुशबू की तरह आये
और चारों और मेरे दिल को महका गये,
लेकिन ये दस्तक भी एक सबक बन आई,
ज़िंदगी जीने का नया तरीका सिखाई थी,
जो तलाशते थे अब तक किसी चेहरे में,
वो मोहब्बत हमें एक अनछुये एहसास में नज़र आई।
-