Stuti Singhal  
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Joined 31 March 2017


Joined 31 March 2017
10 JUN AT 23:10

Perhaps in the world of stones heart is the heaviest.

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25 MAY AT 23:24

दुआओं में भी मांगा तुमको
कुदरत भी रोई बहुत साथ मेरे
उसने जाने कितने दिनों तक
बारिशों में भिगाया सब कुछ
सुनो वो सीने में दिल ही है ना?
या पत्थर है कोई?
जो ज़रा तरस ना आया तुमको?

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24 MAY AT 1:18

तुम्हीं रुक जाओ
तुम्हारा पास होना ऐसा लगता है
मानो वक़्त को थाम लिया है मैंने!

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18 MAY AT 21:36

सच में हो या मैं ख़्वाब में हूं?

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17 MAY AT 23:43

झरनों से बहता मीठा पानी पीते हुए
नदियों के ठंडे पानी में पांव भिगोते हुए
ऊंची से ऊंची पहाड़ी पे चढ़ते हुए
रेगिस्तानों की सारी धूल बदन पे लपेटे हुए
बहुत दूर जाना चाहते हैं
तुम्हारे साथ जाना चाहते हैं
आकाश को बस एक बार छूकर आना चाहते हैं

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16 MAY AT 23:24

ख़ाली कप में
गर्म चाय भर दी है
तुम्हारी पसंद की बिस्किट भी
लाकर मेज़ पर रख दी है
आ जाओ ना जल्दी से
तुमसे ढेर सारी बातें भी करनी हैं
तुम जो आओ तो ये शाम भी
ज़रा सी चुप्पी तो साधे
देखो ना कैसी मनहूस बातें करती है
वो अब कभी नहीं आएगी
हौले से मेरे कान में कहती है
और फिर ज़ोर से हंसती है

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15 MAY AT 19:42

अक्सर अपनी काली घनी ज़ुल्फ़ों को जूड़े में बांध कर
अपनी गहरी काली आंखें मीच कर
सो जाया करती थी वो
बिखरती रात को भी शायद समेट लेना चाहती थी
बिखरा कमरा, बिखरी बातें, बिखरी यादें, बिखरा मैं
कुछ भी बिखरा बिखरा पसंद नहीं था उसे!

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12 MAY AT 22:35

मेरी आंखों ने उसकी आंखों से बात की है
उसके दिल ने कहा है मेरे दिल से हर दर्द अपना
दुनिया के दिए ज़ख़्मों की हमने
बातों बातों में दवा की है
कैसे मान लूं कि नहीं आएगी वो?
मैंने तो घर के दरवाज़े पे
अपने और उसके नाम की तख्ती भी लगवा दी है!

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10 MAY AT 1:00

या थी वो उसकी मासूम आंखों की अठखेलियाँ
कि ये बरसों पहले पाषाण हो चुका दिल मेरा
उसकी एक झलक पाते ही मोम सा पिघल गया!

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6 MAY AT 0:53

पूछा था उसने जाते जाते
पर उस वक़्त तो मानो पत्थर हो गया था मैं
और ये दिल मेरा
काश! उस दिन उसे रोक कर कह देता
कि वो जो ना हो
तो चांदनी रात को भी रहता है अमावस का अंधेरा
सुबह भी आकाश में सूरज नहीं निकलता
घर में कोई सामान सही जगह पर नहीं मिलता
टाई पहनने से दम घुटता है मेरा
हाथ घड़ी भी भूल जाता हूं पहनना
ज़रूरत पड़ने पर जो टटोलू जेब कभी
तो उसमे से रुमाल नहीं निकलता
आईने में जो देखूं ख़ुद को
तो उस पार मुझे दिखता है कोई और मुझसे अलग सा!

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